यक़ीनन होगा उस पर भी असर आहिस्ता आहिस्ता- غزل ग़ज़ल




यक़ीनन होगा उस पर भी असर आहिस्ता आहिस्ता
तुलू होगी अँधेरे से सहर आहिस्ता आहिस्ता
یقیناً ہوگا اس پر بھی اثر آہستہ آہستہ
طلوع ہوگی اندھیرے سے سحر آہستہ آہستہ
           
हमारी बेख़ुदी जाने कहाँ ले जाए अब हमको
किधर जाना था, चल निकले किधर आहिस्ता आहिस्ता
ہماری بیخودی جانے کہاں لے جاۓ اب ہمکو
کدھر جانا تھا، چل نکلے کدھر آہستہ آہستہ

चमन दिल का उजड़ कर अब तो सहरा बनता जाता है
लगे हैं सूखने सारे शजर आहिस्ता आहिस्ता
چمن دل کا اجڑ کر اب تو صحرا ہوتا جاتا ہے
لگے ہیں سوکھنے سارے شجر آہستہ آہستہ

उभरता है नियाज़-ए-शौक़ अब तो बेनियाज़ी से
दुआ जाने लगी है अर्श पर आहिस्ता आहिस्ता
ابھرتا ہے نیازِ شوق اب تو بینیازی سے
دعا جانے لگی ہے عرش پر آہستہ آہستہ

मोहब्बत अब मुसलसल दर्द में तब्दील होती है
बना जाता है शोला ये शरर आहिस्ता आहिस्ता
محبت اب مسلسل درد میں تبدیل ہوتی ہے
بنا جاتا ہے شعلہ یہ شرر آہستہ آہستہ

चला ले तीर जितने तेरे तरकश में हैं ऐ क़ातिल
मेरे सीने पे लेकिन वार कर आहिस्ता आहिस्ता
چلا لے تیر جتنے تیرے ترکش میں ہیں اۓ قاتل
مرے سینے پہ لیکن وار کر آہستہ آہستہ

इसी उम्मीद पर सींचा है ख़ूँ से बीज उल्फ़त का
ये पौधा बन ही जाएगा शजर आहिस्ता आहिस्ता
اسی امید پر سینچا ہے خوں سے بیج الفت کا
یہ پودا بن ہی جایۂگا شجر آہستہ آہستہ

सफ़र करते हैं पैहम हम मगर मंज़िल नहीं मिलती
कि हरकत तेजतर है और सफ़र आहिस्ता आहिस्ता
سفر کرتے ہیں پیہم ہم مگر منزل نہیں ملتی
"کہ حرکت تیزتر ہے اور سفر آہستہ آہستہ"

अगर है जुस्तजू तुझ को मोहब्बत के ख़ज़ाने की
तो फिर मुमताज़ धड़कन में उतर आहिस्ता आहिस्ता
اگر ہے جستجو تجھ کو محبت کے خزانے کی
تو پھر ممتازؔ دھڑکن میں اتر آہستہ آہستہ

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