वो सितमगर आज हम पर वार ऐसा कर गया
वो
सितमगर आज हम पर वार ऐसा कर गया
ये
सिला था हक़परस्ती का कि अपना सर गया
रूह
तो पहले ही उसकी मर चुकी थी दोस्तो
एक
दिन ये भी हुआ फिर, वो जनाज़ा मर गया
वो
लगावट, वो मोहब्बत, वो मनाना, रूठना
ऐ
सितमगर तेरे हर अंदाज़ से जी भर गया
ताक़त-ओ-जुरअत
सरापा, नाज़-ए-शहज़ोरी था जो
जाने
क्यूँ दिल के धड़कने की सदा से डर गया
एक
लग़्ज़िश ने ज़ुबाँ की जाने क्या क्या कर दिया
तीर
जो छूटा कमाँ से काम अपना कर गया
सर
झुकाए आज क्यूँ बैठा है तू ऐ तुंद ख़ू
कजकुलाही
क्या हुई तेरी, कहाँ तेवर गया
एक
उस लम्हे को दे दी हम ने हर हसरत कि फिर
ज़िन्दगी
से सारी मस्ती, हाथ से साग़र गया
ऐ
तमन्ना, तेरे इस एहसान का बस शुक्रिया
हर
अधूरे ख़्वाब से “मुमताज़” अब जी भर गया
हक़परस्ती
- सच्चाई की पूजा, जुरअत – हिम्मत, सरापा – सर से पाँव तक, नाज़-ए-शहज़ोरी – तानाशाही का गौरव, लग़्ज़िश – लड़खड़ाना, तुंद ख़ू – बद मिज़ाज, कजकुलाही – स्टाइल, साग़र – प्याला (शराब का)
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