तरही ग़ज़ल - है इंतज़ार अना को , मगर नहीं होता
है इंतज़ार अना को , मगर नहीं होता कोई भी दांव कभी कारगर नहीं होता हज़ार बार खिज़ां आई दिल के गुलशन पे ये आरज़ू का शजर बेसमर नहीं होता हयात लम्हा ब लम्हा गुज़रती जाती है हयात का वही लम्हा बसर नहीं होता हकीक़तें कभी आँखों से छुप भी सकती हैं हर एक अहल ए नज़र दीदावर नहीं होता गुनह से बच के गुज़र जाना जिस को आ जाता तो फिर फ़रिश्ता वो होता , बशर नहीं होता बिसात ए हक़ पे गुमाँ की न खेलिए बाज़ी यक़ीं की राह से शक का गुज़र नहीं होता बचा भी क्या है मेरी ज़ात के ख़ज़ाने में के बेनावाओं को लुटने का डर नहीं होता नियाज़मंदों से ऐसी भी बेनियाज़ी क्या "किसी भी बात का उस पर असर नहीं होता " भटकते फिरते हैं 'मुमताज़ ' हम से ख़ाना ब दोश हर एक फ़र्द की क़िस्मत में घर नहीं होता अना= अहम्, खिज़ां= पतझड़, आरज़ू= इच्छा, शजर= पेड़, बे समर= बिना फल का, हयात= जीवन, लम्हा ब लम्हा= पल पल, हकीक़तें= सच्चाइयाँ, अहल ए नज़र= आँख वाला, दीदावर= देखने का सलीका रखने वाला, गुनह= पाप, बशर= इंसान, ज़ात= ह...