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HUMAN RIGHTS : RIGHTS FOR MUSLIM WOMEN

A Pakistani lady, who dose not want to disclose her name, says, “ Since the dawn of Abrahamic faith, the women had been seen as the evil temptress, the vile seducer of men, the sobbing myth driving men to their follies and demise. Her menstruation made her unclean and impure, the juices flowing from her vagina are the lures of the devil. She is blamed for fall of man and the trials of humanity”. This statement shows the hidden anger aroused by the injustice and discrimination faced by a woman, who has no courage to speak about the matter, but wants to show her feelings hideously. This is a picture of all the discrimination women are facing since prehistoric era till today. For men, a woman is an object to use as a sex toy when needed, a machine of child birth and a property to possess on, however he believes her to be a wicked thing and a messenger of devil. Actually I would say that it is a gimmick of the man oriented society to keep women under their control. Even they feed th

ख़दशात दिल में पलते हैं

ख़दशात दिल में पलते हैं , आँखों में डर भी हैं पत्थर के शहर में कई शीशे के घर भी हैं बरता है हम ने हस्ब-ए-ज़रुरत हर एक को गुल ही नहीं हैं , हाथ में तीर-ओ-तबर भी हैं गो बहर-ए-ज़ात में हैं तलातुम हज़ारहा गहराई में उतर जो सको , तो गोहर भी हैं वाक़िफ़ तो हम हैं ख़ूब तेरे हर कमाल से तेरी जफ़ागरी से मगर बेख़बर भी हैं बीनाई की हुदूद प् थे हुक्मराँ कभी कुछ रोज़ से वो जलवे तेरे दर ब दर भी हैं शादाब गुल्सितानों को शायद ख़बर नहीं ऐसी भी कुछ ज़मीनें हैं , जो बेशजर भी हैं थकने की बाल-ओ-पर को इजाज़त नहीं अभी मेरी निगाह में अभी शम्स-ओ-क़मर भी हैं " मुमताज़" उन के दिल में भी कुछ शर ज़रूर है पेशानी पर लिखे हुए कुछ बल इधर भी हैं ख़दशात=अंदेशा , हस्ब-ए-ज़रुरत=ज़रूरत के मुताबिक़ , गुल=फूल , तीर-ओ-तबर=तीर और कुल्हाड़ी , गो=हालाँकि , बहर-ए-ज़ात=अस्तित्व का समंदर , तलातुम=तूफ़ान , हज़ारहा=हज़ारों , गोहर=मोती , जफ़ागरी=ज़ुल्म करने की आदत , बीनाई=दृष्टि , हुदूद=हदें , हुक्मराँ=हुकूमत करने वाले , शादाब=खिले हुए , बेशजर=बिना पेड़ों के , बाल-ओ-पर=पंख , शम्स-ओ-क़मर=सू

ज़हन-ओ-दिल पर इश्क़ का जादू नज़र आने लगे

ज़हन-ओ-दिल पर इश्क़ का जादू नज़र आने लगे हो मोअत्तर दीद और ख़ुशबू नज़र आने लगे बात भी हम डर के करते हैं , कि अब किस बात में   जाने किस को कौन सा पहलू नज़र आने लगे ढालना होगा पसीने में लहू को इस तरह बख़्त पर इंसान का क़ाबू नज़र आने लगे ऐसा लगता है कि अब हर तीरगी छंट जाएगी आज फिर उम्मीद के जुगनू नज़र आने लगे जाग उठी शैतानियत , अब नेकियों की ख़ैर हो हर तरफ़ ख़ंजर ब कफ़ साधू नज़र आने लगे आ गई शायद वही मंज़िल मोहब्बत की , जहाँ उस का ही चेहरा हमें हर सू नज़र आने लगे एक बस इंसानियत नायाब है इस देश में अब यहाँ बस मुस्लिम-ओ-हिन्दू नज़र आने लगे इस क़दर खो जाए तेरी ज़ात में मेरा वजूद " काश ये भी हो कि मुझ में तू नज़र आने लगे" जब बरहना रक्स पर आमादा हो फ़ितना गरी हर तरफ़ "मुमताज़" हा-ओ-हू नज़र आने लगे मोअत्तर – ख़ुशबू में तर , दीद – दृष्टि , बख़्त – भाग्य , तीरगी – अँधेरा , ख़ंजर ब कफ़ – हाथ में ख़ंजर लिए , हर सू – हर तरफ़ , नायाब – दुर्लभ , बरहना – वस्त्रहीन , रक्स – नृत्य , फ़ितना गरी – फ़साद फैलाने की प्रवृत्ति , हा-ओ-हू – रोना पीटना zeh