ख़दशात दिल में पलते हैं


ख़दशात दिल में पलते हैं, आँखों में डर भी हैं
पत्थर के शहर में कई शीशे के घर भी हैं

बरता है हम ने हस्ब-ए-ज़रुरत हर एक को
गुल ही नहीं हैं, हाथ में तीर-ओ-तबर भी हैं

गो बहर-ए-ज़ात में हैं तलातुम हज़ारहा
गहराई में उतर जो सको, तो गोहर भी हैं

वाक़िफ़ तो हम हैं ख़ूब तेरे हर कमाल से
तेरी जफ़ागरी से मगर बेख़बर भी हैं

बीनाई की हुदूद प् थे हुक्मराँ कभी
कुछ रोज़ से वो जलवे तेरे दर ब दर भी हैं

शादाब गुल्सितानों को शायद ख़बर नहीं
ऐसी भी कुछ ज़मीनें हैं, जो बेशजर भी हैं

थकने की बाल-ओ-पर को इजाज़त नहीं अभी
मेरी निगाह में अभी शम्स-ओ-क़मर भी हैं

"मुमताज़" उन के दिल में भी कुछ शर ज़रूर है
पेशानी पर लिखे हुए कुछ बल इधर भी हैं

ख़दशात=अंदेशा, हस्ब-ए-ज़रुरत=ज़रूरत के मुताबिक़, गुल=फूल, तीर-ओ-तबर=तीर और कुल्हाड़ी, गो=हालाँकि, बहर-ए-ज़ात=अस्तित्व का समंदर, तलातुम=तूफ़ान, हज़ारहा=हज़ारों, गोहर=मोती, जफ़ागरी=ज़ुल्म करने की आदत, बीनाई=दृष्टि, हुदूद=हदें, हुक्मराँ=हुकूमत करने वाले, शादाब=खिले हुए, बेशजर=बिना पेड़ों के, बाल-ओ-पर=पंख, शम्स-ओ-क़मर=सूरज और चाँद, शर=झगड़ा, पेशानी=माथा


khadshaat dil meN palte haiN, aankhoN meN dar bhi haiN
patthar ke shahr meN kai sheeshe ke ghar bhi haiN

barta kiye haiN hasb-e-zaroorat har ek ko
gul hi nahiN haiN haath meN, teg-o-tabar bhi haiN

go bahr-e-zaat meN haiN talaatum hazaarhaa
gehraai meN utar jo sako to gohar bhi haiN

waaqif to ham haiN khoob tere har kamaal se
teri jafaagari se magar bekhabar bhi haiN

binaai ki hudood pa the hukmaraaN kabhi
kuchh roz se wo jalwe tere dar ba dar bhi haiN

shaadaab gulsitaanoN ko shaayad khabar nahiN
aisi bhi kuchh zameeneN haiN, jo beshajar bhi haiN

thakne ki baal-o-par ko ijaazat nahiN abhi
meri nigaah meN abhi shams-o-qamar bhi haiN

"Mumtaz" un ke dil meN bhi kuchh shar zaroor hai
peshaani par likhe hue kuchh bal idhar bhi haiN

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