दीद की हर उम्मीद मिटा दी
दीद की हर उम्मीद मिटा दी हम ने तेरी तस्वीर छुपा दी याद भी उस की दिल से मिटा दी बारहा ख़ुद को यूँ भी सज़ा दी दिल तो हुआ अब दर्द का आदी अब जो तसल्ली दी भी तो क्या दी दूर निकल आए हैं तो हम को ख़्वाब नगर से किस ने सदा दी हम पे है एहसान ख़ुदा का रंग - ए - तग़ज्ज़ुल , फ़हम - ओ - ज़का दी होश ने पहने पंख जुनूँ के उस ने हमें क्या शय ये पिला दी माज़ी के वीरान मकाँ की जब गुज़रे ज़ंजीर हिला दी जल जाएं सब ज़हन की पर्तें हम को तबीअत बर्क़ नुमा दी चैन के इक लम्हे की ख़ातिर हर क़ीमत " मुमताज़ " सिवा दी دید کی ہر امید مٹا دی ہم نے تیری تصویر چھپا دی یاد بھی اس کی ...