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ज़ालिम के दिल को भी शाद नहीं करते
ज़ालिम के दिल को भी शाद नहीं करते मिट जाते हैं , हम फ़रियाद नहीं करते चेहरा कुछ कहता है , लब कुछ कहते हैं शायद वो दिल से इरशाद नहीं करते आ पहुंचे हैं शहर - ए - ख़ुशी में उकता कर अब वीराने हम आबाद नहीं करते हर मौक़े पर गोहर लुटाना क्या मानी अश्कों को यूं ही बरबाद नहीं करते हर हसरत का नाहक़ खून बहा डालें इतनी भी अब हम बेदाद नहीं करते देते हैं दिल , लेकिन खूब सहूलत से अब तो कोहकनी फरहाद नहीं करते ज़हर खुले ज़ख्मों में बनने लगता है " हम गुज़रे लम्हों को याद नहीं करते" बरसों रौंदे जाते हैं , तब उठते हैं यूँ ही हम "मुमताज़" फ़साद नहीं करते zaalim ke dil k bhi shaad nahiN karte mit jaate haiN, ham fariyaad nahiN karte chehra kuchh kehta hai, lab kuchh kehte haiN shaayad wo dil se irshaad nahiN karte aa pahnche haiN shehr e khushi meN ukta kar ab veeraane ham aabaad nahiN karte har mauqe par gohar lutaana kya maani ashkoN ko yooN hi barbaad nahiN karte har hasrat ka
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