है सूखी पड़ी कब से ख़्वाबों की छागल

 है सूखी पड़ी कब से ख़्वाबों की छागल

तो मुरझा गई ज़िंदगानी की कोंपल

 

ख़ुदा जाने टूटा है सामान क्या क्या

मेरे दिल के अंदर बहुत शोर था कल

 

कहो दिल के सेहरा से मोहतात गुज़रें

कहीं जल न जाए बहारों का आँचल

 

हैं ख़ामोश कब से जुनूँ के इरादे

सुकूँ ढूँढती है, तमन्ना है पागल

 

निभेगा कहाँ साथ जन्मो-जनम का

ग़नीमत हैं ये दो शनासाई के पल

 

है तूफ़ान सा बेहिसी की ख़ला में  

बयाबान दिल में अजब सी है हलचल

 

है नालाँ तलब, जुस्तजू थक गई है

मोअम्मा ये हस्ती का होता नहीं हल

 

सिला तेजगामी का "मुमताज़" ये है

जुनूँ खो गया और तमन्ना है बोझल  

 

सेहरा – मरुस्थल, मोहतात – सावधानी से, शनासाई – जान-पहचान, बेहिसी – भावनाशून्यता, ख़ला – निर्वात, नालाँ – विलाप, तलब - माँग, जुस्तजू – खोज, मोअम्मा – पहेली, हस्ती – अस्तित्व

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