नई उम्र की नई फ़सल
फेसबुक ने हमारे समाज का क्या भला किया या क्या बुरा किया, यह अलग विषय है लेकिन फेसबुक
ने हर किसी को अपने विचारों को दुनिया के सामने रखने का एक प्लेटफॉर्म ज़रूर दिया है, इसमें कोई शक नहीं और आज फेसबुक
की मेहरबानी से हमारे साहित्य जगत में लेखकों की एक पूरी पौध पक कर तैयार हो गई है।
ऐसा कोई ज़रूरी नहीं है कि फेसबुक पर अपने विचार व्यक्त करने वाला हर लेखक अच्छा ही
हो। उन में से कुछ वाकई बहुत बुरे हैं, जिन्हें लेखन तो क्या, भाषा और व्याकरण का भी ज्ञान नहीं है। लेकिन इसमें भी कोई शक
नहीं है कि फेसबुक ने हमारे साहित्य जगत को कुछ वाकई बहुत ही अच्छे और सक्षम लेखकों
का नज़राना भी दिया है, जिनकी लेखनी में निर्भीकता और विचारों में दम है। नई पौध के इन्हीं लेखकों में
से एक नाम अशफ़ाक़ अहमद का भी है, जो युवा हैं, जिनकी लेखनी में भरपूर रवानी है, विचारों में नयापन है और जिनकी
नज़रों में समाज की हर समस्या को एक नए नज़रिये से देखने की रौशनी भी है। हाल ही में
उनकी कहानियों का संग्रह "गिद्धभोज" मैं ने पढ़ा, और इसमें कोई दोराय नहीं कि मैं
इन कहानियों से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकी।
"गिद्धभोज" की कहानियाँ नई दुनिया के नए भारत की कहानियाँ
हैं। इनमें आज के दौर के लोग हैं, जो हमारे आपके जैसे हैं और उनका वैसी ही समस्याओं से सामना
है जिनसे आज हमारा आपका सामना होता है। इनमें मोबाइल है, कम्प्युटर है, इंटरनेट है, व्हाट्सअप है, कहने का मतलब यह कि नए जमाने
के सभी प्रतीक और नए जमाने की सभी अच्छाइयाँ और बुराइयाँ इन कहानियों में मौजूद हैं।
"गिद्धभोज"
में कुल पचीस कहानियाँ हैं, जिनमें कुछ कहानियाँ पहले ही
फेसबुक और व्हाट्सएप के जरिये वाइरल हो कर बिना नाम के ही लोगों तक पहुँच बना चुकी
हैं। इस संग्रह में उन्हें देख कर मुझे पता चला कि उन के लेखक अशफ़ाक़ अहमद हैं। इस की
हर कहानी किसी न किसी समस्या को उठाती है, और समाज का चेहरा उस की तमाम खूबियों और भयानकताओं के साथ बेनकाब
कर देती है। आज का युवा समाज को किस नज़रिये से देखता है, या उसे इन समस्याओं को किस नज़रिये
से देखना चाहिए, यह संग्रह इसका एक आईना
है। मैं समझती हूँ, आज के दौर में हर किसी को ऐसे नजरिये की ज़रूरत है। हर किसी को कम से कम एक बार
इस किताब को पढ़ना ही चाहिए।
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