ज़हन ओ दिल इरफ़ान से सरशार होना चाहिए
ज़हन ओ दिल इरफ़ान से सरशार होना चाहिए
अब इबादत का जुदा मेयार होना चाहिए
नाम है मुस्लिम,
मगर इस्लाम का ऐ दोस्तो
अब ज़ुबान-ए-दिल से भी इक़रार होना चाहिए
देख डाला है नज़र ने हर नज़ारा, अब मगर
गुंबद-ए-ख़ज़रा का बस दीदार होना चाहिए
अहमद-ए-मुरसल की ज़ात-ए-पाक का जब ज़िक्र हो
रूह आसिम,
बावज़ू किरदार होना चाहिए
होगा फिर "मुमताज़" दिल पर इंकेशाफ़-ए-राज़-ए-हक़
ज़हन-ओ-दिल में वो हेरा का गार होना चाहिए
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