किस को समझाएँ यहाँ हम दिल-ए-रंजूर की बात


किस को समझाएँ यहाँ हम दिल-ए-रंजूर की बात
बुझते बुझते जो जला उस मह-ए-बे नूर की बात
کس کو سمجھائیں یہاں ہم دلِ رنجور کی بات
بجھتے بجھتے جو جلا اُس مہِ بے نور کی بات
           
जल न जाएँ कहीं जलवे की तपिश से आँखें
ताब-ए-नज़्ज़ारा अगर हो तो करो तूर की बात
جل نہ جائیں کہیں جلوے کی تپش سے آنکھیں
تابِ نظارہ اگر ہو تو کرو طور کی بات

आरज़ू मचली, तबीयत पे ख़ुमार आने लगा
छेड़ दी किस ने सरापा मए-भरपूर की बात
آرزو مچلی، طبیئت پہ خمار آنے لگا
چھیڑ دی کس نے سراپا مئے بھرپور کی بات

ले के शहवत की अजब एक चमक आँखों में
शेख़ जी करते रहे देर तलक हूर की बात
لے کے شہوت کی اجب ایک چمک آنکھوں مین
شیخ جی کرتے رہے دیر تلک حور کی بات

दार शरमाया, पशेमान हुआ दीन-ए-हक़
फिर अनल हक़ से अदा हो गई मंसूर की बात
دار شرمایا، پشیمان ہوا دینِ حق
پھر انا الحق سے ادا ہو گئی منصور کی بات

मुंतज़िर लम्हों की वुस'अत की न पूछो "मुमताज़"
रात की बात भी लगती है बहुत दूर की बात
منتظر لمحوں کی وسعت کی نہ پوچھو ممتازؔ
رات کی بات بھی لگتی ہے بہت دور کی بات
दिल-ए-रंजूर - दुखी दिल, मह-ए-बे नूर - बिना ज्योति का चाँद, ताब-ए-नज़्ज़ारा - दर्शन की ताक़त, तूर - वह पहाड़ जहां मूसा को अल्लाह ने दर्शन दिये थे, सरापा मए-भरपूर - सर से पाँव तक भरपूर शराब, शहवत - वासना, हूर - वह खूबसूरत औरतें जो जन्नत में मोमिनों को ईनाम के तौर पर मिलेंगी, दार - मृत्युदंड देने की जगह, दीन-ए-हक़ - सच्चाई का धर्म, अनल हक़ - अहं ब्रह्मास्मि, मंसूर एक दीवाना इंसान जिसे अनल हक़ का नारा लगाने पर सूली पर चढ़ा दिया गया, मुंतज़िर - इंतज़ार में, लम्हों की - पलों की, वुस'अत - विस्तार

Comments

  1. जल न जाएँ कहीं जलवे की तपिश से आँखें
    ताब-ए-नज़्ज़ारा अगर हो तो करो तूर की बात
    جل نہ جائیں کہیں جلوے کی تپش سے آنکھیں
    تابِ نظارہ اگر ہو تو کرو طور کی بات

    Lajawaab
    Waaaaaaaaaah waaaaah waaah

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  2. किस को समझाएँ यहाँ हम दिल-ए-रंजूर की बात
    बुझते बुझते जो जला उस मह-ए-बे नूर की बात
    کس کو سمجھائیں یہاں ہم دلِ رنجور کی بات
    بجھتے بجھتے جو جلا اُس مہِ بے نور کی بات

    जल न जाएँ कहीं जलवे की तपिश से आँखें
    ताब-ए-नज़्ज़ारा अगर हो तो करो तूर की बात
    جل نہ جائیں کہیں جلوے کی تپش سے آنکھیں
    تابِ نظارہ اگر ہو تو کرو طور کی بات

    आरज़ू मचली, तबीयत पे ख़ुमार आने लगा
    छेड़ दी किस ने सरापा मए-भरपूर की बात
    آرزو مچلی، طبیئت پہ خمار آنے لگا
    چھیڑ دی کس نے سراپا مئے بھرپور کی بات

    ले के शहवत की अजब एक चमक आँखों में
    शेख़ जी करते रहे देर तलक हूर की बात
    لے کے شہوت کی اجب ایک چمک آنکھوں مین
    شیخ جی کرتے رہے دیر تلک حور کی بات

    दार शरमाया, पशेमान हुआ दीन-ए-हक़
    फिर अनल हक़ से अदा हो गई मंसूर की बात
    دار شرمایا، پشیمان ہوا دینِ حق
    پھر انا الحق سے ادا ہو گئی منصور کی بات

    मुंतज़िर लम्हों की वुस'अत की न पूछो "मुमताज़"
    रात की बात भी लगती है बहुत दूर की बात
    منتظر لمحوں کی وسعت کی نہ پوچھو ممتازؔ
    رات کی بات بھی لگتی ہے بہت دور کی بات

    matla ta maqta khoobtareen kalaam

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