ज़मीर और मतलब की यलग़ार में


ज़मीर और मतलब की यलग़ार में
उजागर हुए ऐब किरदार में
ضمیر اور مطلب کی یلغار میں
اُجاگر ہوئے عیب کردار میں

गिरा है ज़मीर ऐसा अदवार में
अना बेच डाली है बाज़ार में
گرا ہے ضمیر ایسا ادوار میں
انا بیچ ڈالی ہے بازار میں

न पूछो वहाँ ऐश राजाओं के
जहां संत लिपटे हों व्यभिचार में
نہ پوچھو وہاں عیش راجاؤں کے
جہاں سنت لپٹے ہوں ویبھیچار میں

तमद्दुन ने हमको अता क्या किया
कि इंसानियत थी फ़क़त ग़ार में
تمدن نے ہم کو عطا کیا کیا
کہ انسانیت تھی فقط غار میں

गुलों कि नज़ाकत ने ताईद की
अजब सी कशिश है हर इक ख़ार में
گلوں کی نزاکت نے تائید کی
عجب سی کشش ہے ہر اک خار میں

है दी उम्र तो तजरुबे पाए हैं
निहाँ हैं जो चांदी के हर तार में
ہے دی عمر تو تجربے پائے ہیں
نہاں ہیں جو چاندی کے ہر تار میں

मुमताज़ जीता यहाँ सच कभी
ये सब मन्तक़ें यार बेकार में
نہ ممتازؔ جیتا یہاں سچ کبھی
یہ سب منطقیں یار بیکار میں
यलग़ार-युद्ध, ऐब-त्रुटि, किरदार-चरित्र, अदवार में-युगों में, अना-खुद्दारी, तमद्दुन-सामाजिकता, फ़क़त-केवल, ग़ार-गुफा, ताईद-समर्थन, मन्तक़ें-लफ़्फ़ाज़ी।

Comments

Popular posts from this blog

ज़ालिम के दिल को भी शाद नहीं करते