तिलिस्म-ए-आरज़ू से ज़ीस्त को मस'हूर रहने दो


तिलिस्म-ए-आरज़ू से ज़ीस्त को मस'हूर रहने दो
हमें दुनिया के ज़ेर-ओ-बाम से मफ़रूर रहने  दो
طلسمِ آرزو سے زیست کو مسحور رہنے دو
ہمیں دنیا کے زیر و بام سے مفرور رہنے دو

मुबारक तुम को सैराबी,   हमें मजबूर रहने  दो
हमारी  पस्तहाली पर  सितम  भरपूर  रहने  दो
مبارک تم کو سیرابی، ہمیں مجبور رہنے دو
ہماری پست حالی پر ستم بھرپور رہنے دو

अगर आज़ाद हो तो ज़िन्दगी दुशवार कर  डाले
बड़ी सरकश तमन्ना है,  इसे महसूर रहने  दो
اگر آزاد ہو تو زندگی دشوار کر ڈالے
بڑی سرکش تمنا ہے، اِسے محصور رہنے دو

है तुममें हौसला तो तुम ही मंजिल तक पहुँच जाओ
हमारा क्या,   हमें यूँ ही थकन से चूर रहने दो
ہے تم میں حوصلہ تو تم ہی منزل تک پہنچ جاؤ
ہمارا کیا، ہمیں یوں ہی تھکن سے چور رہنے دو

सियासत के लिए हैं और भी महवर ज़माने  में
अदब को तो सियासत से ज़रा तुम दूर रहने दो
سیاست کے لئے ہیں اور بھی محور زمانے میں
ادب کو تو سیاست سے ذرا تم دور رہنے دو

मज़ा क्या ख़ाक आता है? ख़िरद की लनतरानी में
जुनूँ को अक़्ल पर थोडा बहुत मक़दूर  रहने  दो
مزہ کیا خاک آتا ہے؟ خرد کی لنترانی میں
جنوں کو عقل پر تھوڑا بہت مقدور رہنے دو

मुबारक हो क़रार-ए-मसलेहत का ये क़फ़स तुम को
हमारे  हौसले  मक़सूर  हैं,   मक़सूर  रहने  दो
مبارک ہو قرارِ مصلحت کا یہ قفس تم کو
ہمارے حوصلے مقصور ہیں، مقصور رہنے دو

जो तुम आओ,  तो आँखों में उजाले दीद के आएं
तो उस पल तक इन आँखों को यूँ ही बेनूर रहने दो
جو تم آؤ تو آنکھوں میں اجالے دید کے آئیں
تو اس پل تک اِن آنکھوں کو یوں ہی بےنور رہنے دو

यही इक प्यास तो हासिल रही है हर तजस्सुस का
नशे में प्यास के "मुमताज़" हम को चूर रहने  दो
یہی اک پیاس تو حاصل رہی ہے ہر تجسس کا
نشے میں پیاس کے ممتازؔ ہم کو چور رہنے دو
तिलिस्म-जादुई, आरज़ू-इच्छा, ज़ीस्त-जीवन, मस'हूर-जादू के असर में, ज़ेर--बाम-ऊँच-नीच,  मफ़रूर-भागा हुआ, सैराबी-खुशहाली, पस्तहाली-खराब हाल, सरकश-बाग़ी, तमन्ना-इच्छा, महसूर-घिरा हुआ, सियासत-राजनीति, महवर-केंद्र, अदब-साहित्य, ख़िरद-बुद्धिमानी, लनतरानी-शेख़ी बघारना, मक़दूर-हावी, क़रार-ए-मसलेहत-मतलब का समझौता, क़फ़स-पिंजरा, मक़सूर-छोटे,  दीद-दर्शन, बेनूर-अंधा, तजस्सुस-खोज

Comments

Popular posts from this blog

ज़ालिम के दिल को भी शाद नहीं करते