कोई न सायबान, न कोई शजर कहीं
कोई न सायबान,
न कोई शजर कहीं
मसरुफ़ियत में खो गया मिटटी का घर कहीं
लाजिम है एहतियात,
ये राह-ए-निजात है
बहका के लूट ले न हमें राहबर कहीं
हम दर ब दर फिरे हैं सुकूँ की तलाश में
हम को सुकून मिल न सका उम्र भर कहीं
अपनी तबाहियों का भी मांगेंगे हम हिसाब
मिल जाए उम्र-ए-रफ़्तगाँ हम को अगर कहीं
इक उम्र हम रहे थे तेरे मुन्तज़िर जहाँ
हम छोड़ आए हैं वो तेरी रहगुज़र कहीं
रौशन हमारी ज़ात से थे,
हम जो बुझ गए
गुम हो गए हैं सारे वो शम्स-ओ-क़मर कहीं
जब हो सका इलाज,
न देखी गई तड़प
घबरा के चल दिए हैं सभी चारागर कहीं
बरहम हवा से हम ने किया मारका जहाँ
बिखरे पड़े हुए हैं वहीँ बाल-ओ-पर कहीं
उतरा है दिल में जब से तेरा इश्क-ए-लाज़वाल
"पाती नहीं हूँ तब से मैं अपनी ख़बर कहीं"
हाथ उस ने इस ख्याल से आँखों पे रख दिया
"मुमताज़" खो न जाए तुझे देख कर कहीं
शजर – पेड़, मसरुफ़ियत – व्यस्तता,
लाजिम – ज़रूरी, एहतियात – सावधानी, राह-ए-निजात
– मोक्ष का रास्ता, राहबर – रास्ता दिखाने वाला, सुकूँ – शांति, उम्र-ए-रफ़्तगाँ – बीत गई उम्र, मुन्तज़िर – प्रतीक्षारत, रहगुज़र – रास्ता, ज़ात – व्यक्तित्व, शम्स-ओ-क़मर – सूरज और चाँद, चारागर – वैद्य, बरहम – क्रोधित, मारका – युद्ध, बाल-ओ-पर – पंख, इश्क-ए-लाज़वाल – कभी न खत्म होने वाला प्रेम
masroofiyat meN kho
gaya mitti ka ghar kahiN
koi na saaybaan, na
koi shajar kahiN
laazim hai ehtiyaat,
ye raah-e-nijaat hai
bahkaa ke loot le na
hameN raahbar kahiN
ham dar ba dar phire
haiN sukooN ki talaash meN
ham ko sukoon mil na
sakaa umr bhar kahiN
apni tabaahiyoN ka
bhi maangenge ham hisaab
mil jaae
umr-e-raftgaaN ham ko agar kahiN
ik umr tak rahe the
tere muntzir jahaN
ham chhod aae haiN wo
teri rahguzar kahiN
raushan hamaari zaat
se the, ham jo bujh gae
gum ho gae haiN saare
wo shams-o-qamar kahiN
jab ho sakaa ilaaj,
na dekhi gai tadap
ghabra ke chal diye
haiN sabhi chaaragar kahiN
barham hawaa se ham
ne kiya maarkaa jahaN
bikhre pade hue haiN
wahiN baal-o-par kahiN
utra hai dil meN jab
se tera ishq-e-laazawaal
"paati nahiN hooN tab se
maiN apni khabar kahiN"
haath us ne is
khayaal se aankhoN pa rakh diya
"Mumtaz"
kho na jaae use dekh kar kahiN
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