हो गई मिस्मार हस्ती, मिट गया हर मस्अला


हो गई मिस्मार हस्ती, मिट गया हर मस्अला
किस ख़मोशी से उठा है रूह में ये ज़लज़ला
ہو گئی مسمار ہستی مٹ گیا ہر مسئلہ
کِس خموشی سے اُٹھا ہے روح میں یہ زلزلہ

रो पड़ी परवाज़ अबके, दर ब दर है हौसला
ज़हन को खाने लगा है आरज़ूओं का ख़ला
رو پڑی پرواز ابکے در بہ در ہے حوصلہ
ذہن کو کھانے لگا ہے آرزؤں کا خلا

आ गया लो फिर मुक़ाबिल तीरगी का मरहला
ले के उम्मीदों की मय्यत आज का दिन भी ढला
آ گیا لو پھر مقابل تیرگی کا مرحلہ
لے کے امیدوں کی میت آج کا دن بھی ڈھلا

इस सराब-ए-कश्मकश में कब तलक करते रहें
जी को बहलाने की ख़ातिर हसरतों का मशग़ला
اِس سرابِ کش مکش میں کب تلک کرتے رہیں
جی کو بہلانے کی خاطر حسرتوں کا مشغلہ

इस मुसलसल दर्द का अब कुछ तो है लाज़िम इलाज
रो दिया है फूट कर अब पाँव का हर आबला
اِس مسلسل درد کا اب کچھ تو ہے لازم علاج
رو دیا ہے پھوٹ کر اب پاوں کا ہر آبلہ

इस तरह तारीकियों से जंग हम करते रहे
हो गई ख़ामोश जब हर शमअ, तो फिर दिल जला
اس طرح تاریکیوں سے جنگ ہم کرتے رہے
ہو گئی خاموش جب ہر شمع تو پھر دل جلا

क्या मिलेगा तुम को बेबस दिल के मातम के सिवा
दफ़्न रहने दो हमारी रूह का कर्ब-ओ-बला
کیا ملیگا تم کو بیبس دل کے ماتم کے سوا
دفن رہنے دو ہماری روح کا کرب و بلا

तोड़ कर इमकान सारे, कर के हर हसरत का ख़ूँ
कर दिया मुमताज़ मैं ने ज़िन्दगी का फ़ैसला
توڑ کر امکان سارے کر کے ہر حسرت کا خوں
کر دیا ممتازؔ میں نے زندگی کا فیصلہ

ज़लज़ला भूकंप, ख़ला – खालीपन, मुक़ाबिल – सामने, तीरगी – अँधेरा, मरहला – पड़ाव, सराब-ए-कश्मकश – खींचा-तानी की मृग तृष्णा, मशग़ला – शौक़, मुसलसल – लगातार, लाज़िम – ज़रूरी, आबला – छाला, तारीकियों से अँधेरों से, कर्ब-ओ-बला – दर्द और मुसीबत, इमकान – उम्मीद

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