हसरतें जगाने का मन नहीं किया मेरा


हसरतें जगाने का मन नहीं किया मेरा
ये नगर बसाने का मन नहीं किया मेरा
حسرتیں جگانے کا من نہیں کیا میرا
یہ نگر بسانے کا من نہیں کیا میرا

ख़ून का हर इक धब्बा कितना ख़ूबसूरत था
ज़ख़्म-ए-दिल छुपाने का मन नहीं किया मेरा
خون کا ہر اِک دھبہ کتنا خوبصورت تھا
زخمِ دل چھپانے کا دل نہیں کیا میرا

उस को जीत लेने को एक ज़र्ब काफ़ी थी
बस उसे हराने का मन नहीं किया मेरा
اُس کو جیت لینے کو ایک ضرب کافی تھی
بس اسے ہرانے کا من نہیں کیا میرا

तीरगी की ये शिद्दत कम तो ख़ैर क्या होती
आज दिल जलाने का मन नहीं किया मेरा
تیرگی کی یہ شدت کم تو خیر کیا ہوتی
آج دل جلانے کا من نہیں کیا میرا

उस के हर इरादे पर था यक़ीं मुझे लेकिन
उस को आज़माने का मन नहीं किया मेरा
اُس کے ہر ارادے پر تھا یقیں مجھے لیکن
اُس کو آزمانے کا دل نہیں کیا میرا

ले गया वो साथ अपने सारे सुर मोहब्बत के
फिर वो गीत गाने का मन नहीं किया मेरा
لے گیا وہ ساتھ اپنے سارے سُر محبت کے
پھر وہ گیت گانے کا من نہیں کیا میرا

आँधियाँ हक़ीक़त की तेज़ थीं बहुत लेकिन
क़स्र-ए-ख़्वाब ढाने का मन नहीं किया मेरा
آندھیاں حقیقت کی تیز تھیں بہت لیکن
قصرِ خواب ڈھانے کا من نیں کیا میرا

हर ख़ुशी थी वाबस्ता उस की ज़ात से “मुमताज़”
उस का दिल दुखाने का मन नहीं किया मेरा
ہر خوشی تھی وابستہ اُس کی ذات سے ممتازؔ
اُس کا دل دکھانے کا من نہیں کیا میرا
ज़र्ब – चोट, तीरगी – अँधेरा, शिद्दत – तेज़ी, क़स्र-ए-ख़्वाब – सपनों के महल, वाबस्ता – संबंधित

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