तश्नगी निगाहों की लम्हा भर को मिट जाए

तश्नगी निगाहों की लम्हा भर को मिट जाए
सामने कभी तो वो नूर बे नक़ाब आए
تشنگی نگاہوں کی لمحہ بھر کو مٹ جائے
سامنے کبھی تو وہ نور بےنقاب آئے

छीन लें सभी मंज़र आँख से तो मुमकिन है
क़ैद से निगाहों की दिल निजात भी पाए
چھین لیں سبھی منظر آنکھ سے تو ممکن ہے
قید سے نگاہوں کی دل نجات بھی پائے

जल के ख़ाक हो जाए रूह-ओ-क़ल्ब की दुनिया
आरज़ू के सहरा में कौन आग दहकाए
جل کے خاک ہو جائے روح و قلب کی دنیا
آرزو کے سحرا میں کون آگ دہکائے

आज तक बग़ावत पर दिल रहा है आमादा
मस्लेहत मेरे दिल को जाने कब से समझाए
آج تک بغاوت پر دل رہا ہے آمادہ
مصلحت مرے دل کو جانے کب سے سمجھائے

वादी-ए-अना का हर ज़ाविया मोअत्तर है
दिल के इस घरौंदे को किस की याद महकाए
وادیء انا کا ہر زاویہ معطر ہے
دل کے اس گھروندے کو کس کی یاد مہکائے

याद के दरीचों से बच के हम चले लेकिन
दिल पे अब भी पड़ते हैं गुज़रे वक़्त के साए
یاد کے دریچوں سے بچ کے ہم چلے لیکن
دل پہ اب بھی پڑتے ہیں گذرے وقت کے سائے

सींचते हैं अश्कों से यूँ भी दिल को हम अक्सर
शायद इस बयाबाँ में फिर बहार लौट आए
سینچتے ہیں اشکوں سے یوں بھی دل کو ہم اکثر
شائد اس بیاباں میں پھر بہار لوٹ آئے

हम फ़रेब दें इन को कैसे कैसे बहलाएँ
बारहा उम्मीदों को फिर से कौन उकसाए
ہم فریب دیں ان کو کیسے کیسے بہلائیں
بارہا امیدوں کو پھر سے کون اکسائے

शब की काली ज़ुल्फ़ों को धोएँ कितना भी "मुमताज़"
सुबह के उजालों पर ये सियाही जम जाए
شب کی کالی زلفوں کو دھوئیں کتنا بھی ممتازؔ
صبح کے اجالوں پر یہ سیاہی جم جائے

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