घुटा जाता है क़ैद-ए-ज़हन में तो दम मोहब्बत का
घुटा जाता है क़ैद-ए-ज़हन में तो दम
मोहब्बत का
हर इक जज़्बा यहाँ मोहताज है दिल की
रिफ़ाक़त का
नियाज़-ए-शौक़, अब तो इम्तेहाँ है तेरी रहमत का
सिला अब चाहती है ज़िन्दगी अपनी इबादत
का
अगर दिल है तो फिर उस में मोहब्बत
ही मोहब्बत हो
दिलों की सल्तनत में दोस्तो, क्या काम नफ़रत का
वही इक बार बस उजड़ी थी दुनिया आरज़ूओं
की
तमन्ना कर रही है आज भी इक़रार दहशत
का
सुलगती ज़ात के सहरा में आई थीं बहारें
भी
हमारी ज़िन्दगी पर क़र्ज़ है उस एक साअत
का
अयाँ हैं यूँ तो उस की ज़ात के सौ
ज़ाविए हम पर
चलो ये ज़ाविया भी देख लें उस की अदावत
का
ग़ज़ब का शोर है, हस्ती की किरचें बिखरी जाती हैं
तलातुम आज तो दिल में उठा है यार, शिद्दत का
तलातुम में लहू के रेज़ा रेज़ा डूबा
जाता है
तमाशा देखती है ज़िन्दगी दिल की हलाकत
का
मोहब्बत की ये राहें जलते सेहरा से
गुज़रती हैं
हमें भी पास आख़िर रखना होगा इस रिवायत
का
हमारी ज़िन्दगी पर क्यूँ भला अग़यार
का हक़ हो
किया है अब के हम ने फ़ैसला ख़ुद अपनी
क़िस्मत का
ज़मीरों का भी सरमाया जहाँ नीलाम हो
जाए
हमें “मुमताज़” रास आया न ये बाज़ार शोहरत का
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