सियाही देख कर बातिन की अक्सर काँप जाते हैं


सियाही देख कर बातिन की अक्सर काँप जाते हैं
इताब उट्ठे फ़लक पर, हम ज़मीं पर काँप जाते हैं

तलातुम हार जाता है थके बाज़ू की क़ुव्वत से
हमारे  हौसलों  से तो  समंदर  काँप  जाते  हैं

इरादों को मिटा डाले, कहाँ ये ज़ोर क़िस्मत  में
जुनूँ अँगडाई  लेता  है, मुक़द्दर काँप जाते  हैं

ख़मीदा सर हुआ क़ातिल जो देखा हुस्न ज़ख्मों का
रवानी ख़ून में वो है कि  ख़ंजर  काँप  जाते  हैं

जो बेकस बेनवाओं की  फ़ुग़ाँ का शोर उठता है
ज़मीन-ओ-आसमाँ के सारे  महवर काँप जाते हैं

दहकती बस्तियों के  कर्ब  से  इतने  हेरासाँ हैं
फ़सादों की ख़बर से क़ल्ब-ए-मुज़्तर काँप जाते हैं

अली के हम फ़िदाई हैं, हमें क्या ख़ौफ़ दुनिया का
"हमारा नाम आता है तो ख़ैबर   काँप  जाते  हैं"

ज़मीर-ए-बेज़ुबाँ को जब कभी आवाज़ मिलती है
तो फिर 'मुमताज़' अच्छे-अच्छे सुन कर काँप जाते हैं

बातिन-अंतरात्मा, इताब-ग़ुस्सा, फ़लक-आस्मान, तलातुम-तूफ़ान, ख़मीदा-झुका हुआ, बेकस-मजबूर, बेनवा-मूक, फ़ुग़ाँ-रोना धोना, महवर-केंद्र, कर्ब-दर्द,  हेरासाँ-डरे हुए, क़ल्ब-ए-मुज़्तर-बेचैन दिल 


siyaahi dekh kar baatin kee aksar kaanp jaate haiN 
itaab utthe falak par, ham zameeN par kaanp jaate haiN 

talaatum haar jaata hai thake baazoo kee quwwat se 
hamaare hausloN se to samadar kaanp jaate haiN 

iraadoN ko mita daale kahaN ye zor qismat meN 
junooN angdaai leta hai, muqaddar kaanp jaate haiN 

khameeda sar hua qaatil jo dekha husn zakhmoN ka 
rawaani khoon meN wo hai ke khanjar kaanp jaate haiN 

jo bekas benawaaoN kee fughaaN ka shor uthta hai 
zameen-o-aasmaaN ke saare mahwar kaanp jaate haiN 

dahkti bastiyoN ke karb se itne heraasaaN haiN 
fasaadoN kee khabar se qalb e muztar kaanp jaate haiN 

zameer-e-bezubaaN ko jab kabhi aawaaz milti hai
to phir "Mumtaz" achhe achhe sun kar kaanp jaate haiN 



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