तजज़िया


ऐ मुसलमानो, ज़रा अपना करो कुछ तजज़िया
कब तलक हालात का अपने पढ़ोगे मर्सिया
कब तलक सोते रहोगे ख़्वाब-ए-ग़फ़लत में जनाब
सर प आ पहुँचा है फिर इक बार वक़्त-ए-इंक़िलाब

पाई इतने साल में हम ने फ़क़त इक बेकली
ना ख़ुदा ही पाया हम ने ना हमें दुनिया मिली
क्या हमारी हैसियत, शतरंज की इक गोट हैं
हम सियासी लीडरों के वास्ते बस वोट हैं

बेनवा, बेआसरा, हैवान, सब समझा हमें
हुक्मरानों ने भला इंसान कब समझा हमें
ये तो सोचो आज तक ग़ैरों ने हम को क्या दिया
रहबरी के नाम पर हम को सदा धोका दिया

असबियत, फ़िरक़ापरस्ती, फ़िरक़ावाराना फ़साद
चार झूटे लफ़्ज़, कुछ हमदर्दियाँ नाम-ओ-निहाद
लूटती आई है हम को इन की ये सेक्यूलरिज़्म
दर हक़ीक़त हैं सभी माइल ब फंडामेन्टालिज़्म

मरहले अग़यार के हम को कहाँ पहुँचा गए
थे कहाँ और आज हम देखो कहाँ तक आ गए
खो गया है दीन अपना, नातवाँ है बंदगी
दाने दाने को तरसती है हमारी ज़िन्दगी

आज तक कुछ भी न सोचा क़ौम-ए-मुस्लिम के लिए
जब चुनाव आया खिलौने हम को कुछ पकड़ा दिये
अनगिनत वादे सुनहरे, अनगिनत चमकीले ख़्वाब
पर हक़ीक़त की ज़मीं पर हम ने बस पाया सराब

कुछ तो सोचो, अपनी ग़ैरत को ज़रा आवाज़ दो
अपनी हस्ती को ज़रा समझो, ज़रा ऐज़ाज़ दो
हम को पस्पा कर सके दुनिया में किसकी है मजाल
आप हम पूछें ज़रा इन लीडरों से इक सवाल

एक हो जाएँ अगर हम तो ज़माना ज़ेर हो
अपनी ही क़िस्मत में आख़िर क्यूँ सदा अंधेर हो
एक तूफ़ाँ बन के तुम को भी उभरना चाहिए
अब सियासी खेल में तुम को उतरना चाहिए

आओ, हो कर मुत्तहिद इस क़ौम की ताक़त बनो
एक आँधी बन के उभरो, मशअल-ए-ग़ैरत बनो  
फिर वो दिन भी आएगा, पूछेंगे तुम से हुक्मरान

क्या करें ख़िदमत तुम्हारी, ऐ मोअज़्ज़िज़ साहिबान 

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