मसर्रतों की ज़मीं पर ये कैसी शबनम है
मसर्रतों की ज़मीं पर ये कैसी शबनम है
ग़ुबार कैसा है सीने में, मुझ को क्या ग़म है
क़दम क़दम प बिछे हैं हज़ारों ख़ार यहाँ
अभी संभल के चलो, रौशनी ज़रा कम है
ज़रा जो हँसने की कोशिश की, आँख भर आई
शगुफ़्ता ख़ुशियों पे महरूमियों का मौसम है
थकी थकी सी तमन्ना, उदास उदास उम्मीद
बुझा बुझा सा कई दिन से दिल का आलम है
जलन से तपने लगी है फ़िज़ा-ए-सहरा-ए-दिल
हर एक साँस मेरी ज़िन्दगी का मातम है
खिली खिली सी हँसी पर जमी जमी सी ख़लिश
तरब के ज़ख़्म प ख़ुशफ़हमियों का मरहम है
अभी है क़ैद में ख़ुशबू हैं रंग आवारा
अभी बहार परेशाँ है, ज़ीस्त बरहम है
नज़र में डूबती जाती हैं रौशनी की लवें
यक़ीनन आज सितारों की आँख भी नम है
चमन चमन प उदासी, शजर शजर ग़मगीं
हर एक शाख़ प “मुमताज़” ज़र्द परचम है
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