चंद हुसैनी अशआर

 सब्र-ए-हुसैनी की गर्मी ने फ़ख़्र-ए-यज़ीदी तोड़ दिया
सर को झुका कर वक़्त ने वो तारीख़ का पन्ना मोड दिया
रो रो कर देती है गवाही कर्बल की ग़म नाक ज़मीं
देख के ये दिल सोज़ नज़ारा प्यास ने भी दम तोड़ दिया

खेल कर जानों प ज़िंदा कर दिया इस्लाम को
सुर्ख़ रू हैं अहल-ए-ईमाँ, रू सियह है हर यज़ीद
इब्न-ए-असदुल्लाह से ले कर असग़र-ए-मासूम तक
ख़ानदान-ए-हैदरी का बच्चा बच्चा है शहीद

आ जाए हक़ पे बात तो जीना गुनाह है
पैग़ाम मिट के दे गया कुनबा हुसैन का
मलऊन दो जहाँ में ग़ुरूर-ए-यज़ीद है
ज़िन्दा रहेगा आख़िरी सजदा हुसैन का

उम्मत-ए-इस्लाम को कर दे अता अक़्ल-ए-सलीम
तोड़ दे हर जोड़ अब इस आहनी ज़ंजीर का
ऐ मेरे मालिक जो देना है हमारी क़ौम को
दे जिगर ज़ैनब के जैसा, हौसला शब्बीर का

तारीकी-ए-गुनाह में शम्म-ए-वफ़ा हुसैन
जहल-ए-यज़ीदियत है कुजा और कुजा हुसैन

पंजे क़ज़ा के जब बढ़े असग़र को छीनने
अब्बास ने तड़प के पुकारा कि या हुसैन

हसरत से देखते हैं कलेजे को थाम कर
पैकाँ गुलू-ए-असग़र-ए-कमज़ोर का हुसैन

नाना तड़प रहे हैं कि कौसर है मेरे हाथ
और हाय रे ये प्यास का मारा मेरा हुसैन

अल्लाह मेरे नाना की उम्मत को बख़्श दे
मरते हुए भी करते थे ये ही दुआ हुसैन 

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