ज़र्ब तक़दीर ने वो दी कि मेरी हार के साथ
ज़र्ब तक़दीर ने वो दी कि मेरी हार के साथ रेज़ा रेज़ा हुई तौक़ीर भी पिनदार के साथ जैसे गुल कोई हम आग़ोश रहे ख़ार के साथ सैकड़ों रोग लगे हैं दिल-ए-बेज़ार के साथ छू गई थी अभी हौले से नसीम-ए-सहरी ज़ुल्फ़ अठखेलियाँ करने लगी रुख़सार के साथ रास्ता लिपटा रहा पाँव से नागन की तरह हम भी बस चलते रहे इस रह-ए-ख़मदार के साथ रूह ज़ख़्मी हुई , लेकिन ये तमाशा भी हुआ हो गई कुंद वो शमशीर भी इस वार के साथ दीन भी बिकता है बाज़ार-ए-सियासत में कि अब अहल-ए-ईमाँ भी नज़र आते हैं कुफ़्फ़ार के साथ हक़ पे तू है तो मेरी आँखों से आँखें भी मिला क्यूँ नदामत सी घुली है तेरे इंकार के साथ है नवाज़िश कि बुलाया मुझे "मुमताज़" यहाँ लीजिये हाज़िर-ए-ख़िदमत हूँ मैं अशआर के साथ