गिरिया करे, तड़प के वफ़ा की दुहाई दे
गिरिया करे, तड़प के
वफ़ा की दुहाई दे
फ़रियाद फिर भी दिल की न उसको सुनाई दे
अपना तो कुछ भी मुझ को न मेरा अताई दे
दिल फूँकने को आग भी दे तो पराई दे
अब के ठहर गई है मेरी ज़िन्दगी में रात
इन ज़ुलमतों म में राह भी कैसे सुझाई दे
यूँ बेख़ुदी में मिट गया एहसास-ए-दर्द भी
मेरा जुनून ज़ख़्म भी मुझ को हिनाई दे
मैं ने कुचल दिया है हर इक आरज़ू का फन
अब मुझ को दिल की चीख़ में नग़्मा सुनाई दे
वहशत सी अब तो होने लगी है हयात से
मेरी घुटन को भी तो कभी लब कुशाई दे
टकरा के लौट आती हैं हर बार अर्श से
मेरी दुआओं को भी कभी तो रसाई दे
चीख़ों से शेर ढालेगी “मुमताज़” कब तलक
अब तो सुख़न की क़ैद से ख़ुद को रिहाई दे
Comments
Post a Comment