ग़ज़ल - जब यार पुराने मिलते हैं
माज़ी के निशाँ और हाल का ग़म जब एक ठिकाने मिलते हैं
कुछ और चुभन बढ़ जाती है जब यार पुराने मिलते हैं
MAAZI KE NISHAA'N AUR HAAL KA GHAM JAB EK THIKAANE MILTE HAI'N
MAAZI KE NISHAA'N AUR HAAL KA GHAM JAB EK THIKAANE MILTE HAI'N
KUCHH AUR CHUBHAN BADH
JAATI HAI, JAB YAAR PURAANE MILTE HAI'N
कुछ दर्द के तूफ़ाँ उठते हैं, कुछ आग ख़ुशी की जलती है
इक हश्र बपा हो जाता है जब दोनों ज़माने मिलते हैं
KUCHH DARD KE TOOFAA'N
UTHTE HAI'N KUCHH
AAG KHUSHI KI JALTI HAI
IK
HASHR BAPAA HO JAATA HAI, JAB DONO'N ZAMAANE MILTE HAI'N
उस लज़्ज़त से महरूम हुए गो एक ज़माना बीत गया
अब भी वो हमें महरूमी का एहसास दिलाने मिलते हैं
AB
BHI WO HAME'N MEHROOMI KA EHSAAS DILAANE MILTE HAI'N
घर छोड़ के जाना पड़ता है, दिन रात मिलाने पड़ते हैं
पुरज़ोर मशक़्क़त से यारो कुछ रिज़्क़ के दाने मिलते हैं
GHAR
CHHOD KE JAANA PADTA HAI, DIN RAAT MILAANE PADTE HAI'N
PURZOR
MASHAQQAT SE YAARO, KUCHH RIZQ KE DAANE MILTE HAI'N
अब तक तो फ़ज़ा-ए-ज़हन में भी वीरान ख़िज़ाँ का मौसम है
देखें तो बहारों में अबके क्या ख़्वाब न जाने मिलते हैं
AB
TAK TO FAZAA E ZEHN ME'N BHI VEERAAN KHIZAA'N KA MAUSAM HAI
DEKHE'N
KE BAHAARO'N
ME'N AB KE KYA KHWAAB NA JAANE MILTE HAI'N
देखो तो कभी, पलटो तो सही, अनमोल है हर पन्ना पन्ना
माज़ी की किताबों में अक्सर नायाब फ़साने मिलते हैं
DEKHO
TO KABHI, PALTO TO SAHI, ANMOL HAI HAR PANNA PANNA
MAAZI
KI KITAABO'N
ME'N AKSAR NAAYAAB FASAANE MILTE HAI'N
हसरत के लहू का हर क़तरा मिट्टी में मिलाना पड़ता है
मत पूछिए कितनी मुश्किल से ये ग़म के ख़ज़ाने मिलते हैं
HASRAT
KE LAHOO KA HAR QATRA MITTI ME'N MILAANA PADTA HAI
MAT
POOCHHIYE KITNI MUSHKIL SE YE GHAM KE KHAZAANE MILTE HAI'N
जज़्बात के पाओं में बेड़ी, गुफ़्तार पे क़ुफ़्ल-ए-नाज़-ए-अना
वो मिलते भी हैं तो यूँ जैसे एहसान जताने मिलते हैं
JAZBAAT
KE PAAO'N ME'N BEDI, GUFTAAR PE KUFL E NAAZ E ANAA
WO
MILTE BHI HAI'N TO YU'N JAISE, EHSAAN JATAANE MILTE HAI'N
दो चार निवाले भी न मिले तो आब-ए-क़नाअत पी डाला
इस बज़्म-ए-जहाँ की भीड़ में कुछ ऐसे भी घराने मिलते हैं
DO
CHAAR NIWAALE BHI NA MILE, TO AAB E QANAA'AT PEE DALAA
IS
BAZM E JAHAA'N KI BHEED ME'N KUCHH AISE BHI GHARAANE MILTE HAI'N
मख़मूर-ए-ग़म-ए-दौराँ हो कर तक़सीम-ए-मोहब्बत करते हैं
बेकैफ़ जहाँ में कुछ अब भी “मुमताज़” दीवाने रहते हैं
MAKHMOOR
E GHAM E DAURAA'N HO KAR, TAQSEEM E MOHABBAT KARTE HAI'N
BEKAIF
JAHA'N ME'N KUCHH AB BHI "MUMTAZ' DIWAANE MILTE HAI'N
माज़ी – अतीत, हाल – वर्तमान, हश्र – प्रलय, बपा – बरपा, रिज़्क़ – रोज़ी, क़तरा – बूँद, क़ुफ़्ल-ए-नाज़-ए-अना – अहं के घमंड का ताला, आब-ए-क़नाअत – सब्र का पानी, बज़्म-ए-जहाँ
– दुनिया की महफ़िल मख़मूर-ए-ग़म-ए-दौराँ – दुनियादारी के दुख के नशे में चूर, तक़सीम – बँटवारा, बेकैफ़ – बेमज़ा
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