ग़ज़ल - दिन ज़िन्दगी के हमने गुज़ारे कुछ इस तरह
रक्खे हों दिल पे जैसे शरारे, कुछ इस तरह
दिन ज़िन्दगी के हमने गुज़ारे कुछ इस तरह
RAKKHE HO'N DIL PE JAISE SHARAARE, KUCHH IS TARAH
RAKKHE HO'N DIL PE JAISE SHARAARE, KUCHH IS TARAH
DIN ZINDGI KE HAM NE GUZAARE KUCHH IS TARAH
हस्ती है तार तार, तमन्ना लहू लहू
हम ज़िन्दगी की जंग में हारे कुछ इस तरह
HASTI HAI TAAR TAAR,
TAMANNA LAHOO LAHOO
HAM ZINDGI KI JUNG ME'N
HAARE KUCHH IS TARAH
मिज़गाँ से जैसे टूट के आँसू टपक पड़े
टूटे फ़लक से आज सितारे कुछ इस तरह
MIZGAA'N SE JAISE TOOT
KE AANSOO TAPAK PADE
TOOTE FALAK SE AAJ SITAARE KUCHH IS TARAH
हसरत, उम्मीद, ख़्वाब, वफ़ा, कुछ न बच सका
बिखरे मेरे वजूद के पारे कुछ इस तरह
HASRAT, UMMEED, KHWAAB,
WAFAA, KUCHH NA BACH SAKA
BIKHRE MERE WAJOOD KE
PAARE KUCHH IS TARAH
सेहरा की वुसअतों में फ़रेब-ए-सराब था
करती रही हयात इशारे कुछ इस तरह
SEHRA KI WUS'ATO'N ME'N
FAREB E SARAAB THA
KARTI RAHI HAYAAT
ISHAARE KUCHH IS TARAH
हम से बिछड़ के जैसे बड़ी मुश्किलों में हो
माज़ी पलट के हमको पुकारे कुछ इस तरह
HAM SE
BICHHAD KE JAISE BADI MUSHKILO'N ME'N HO
MAAZI PALAT KE HAM KO
PUKAARE KUCHH IS TARAH
तुग़ियानियों से जंग भी उसका ही जुर्म था
कश्ती पे हँस रहे थे किनारे कुछ इस तरह
TUGHYAANIYO'N SE JUNG
BHI US
KA HI JURM THA
KASHTI PE HANS RAHE THE
KINAARE KUCHH IS TARAH
हर ज़ाविए से लगती है अब कितनी ख़ूबरू
हम ने क़ज़ा के रंग निखारे कुछ इस तरह
HAR ZAAVIYE SE LAGTI
HAI AB KITNI KHOOBROO
HAM NE QAZAA KE RANG
NIKHAARE KUCHH IS TARAH
“मुमताज़” जल के ख़ाक हुई सारी ज़िन्दगी
सुलगे थे आरज़ू के शरारे कुछ इस तरह
'MUMTAZ' JAL KE KHAAK
HUI SAARI ZINDGI
SULGE THE AARZOO KE
SHARAARE KUCHH IS TARAH
शरारे – अंगारे, मिज़गाँ – पालक, फ़लक – आसमान, पारे – टुकड़े, वुसअत – फैलाव, फ़रेब-ए-सराब – मृगतृष्णा
का धोखा, हयात – ज़िन्दगी, माज़ी – गुज़रा हुआ वक़्त, तुग़ियानियों – तूफ़ानों, ज़ाविए – फलक, ख़ूबरू – सुंदर, क़ज़ा – मौत
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