एक क़तआ - तमन्नाएँ पिघलती हैं
हज़ारों
ख़्वाहिशें दिल की फ़ज़ाओं में मचलती हैं
निगाहों
में तुम्हारी दीद की किरनें जो घुलती हैं
हमारी
रूह तक जलने लगी है दिल की आतिश में
मोहब्बत
की हरारत से तमन्नाएँ पिघलती हैं
hazaaron khwaahishen dil
ki fazaaon men machalti hain
nigaahon men tumhari deed ki kirnen jo ghulti
hain
hamaari rooh tak jalne lagi hai dil ki aatish men
mohabbat ki haraarat se tamannaen pighalti hain
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