ग़ज़ल - बरहना रक़्स करती है हवस वहशत की तानों पर
बरहना रक़्स करती है हवस वहशत की तानों पर
त’अस्सुब के खिलौने बिकते हैं दिल की दुकानों पर
त’अस्सुब के खिलौने बिकते हैं दिल की दुकानों पर
BARAHNA RAQS KARTI
HAI HAWAS WAHSHAT KI TAANON PAR
TA'ASSUB KE
KHILAUNE BIKTE HAIN DIL KI DUKAANON PAR
परिंदों को ख़बर क्या, जाल है गंदुम के
दानों पर
शिकारी ने चढ़ा रक्खे हैं तीर अपनी कमानों पर
PARINDON KO KHABAR
KYA JAAL HAI GANDUM KE DAANON PAR
SHIKAARI NE
CHADHAA RAKKHE HAIN TEER APNI KAMAANON PAR
सभी मशकूक हैं, सबके दिलों पर ख़ौफ़ तारी
है
अजब सा बोझ इक रक्खा है इन्सानों की जानों पर
SABHI MASHKOOK
HAIN SAB KE DILON PAR KHAUF TAARI HAI
AJAB SA BOJH YE
RAKKHA HAI INSAANON KI JAANON PAR
किसी की नर्मगोई को कोई समझे न कमज़ोरी
बनाता है निशाँ पानी जो गिरता है चट्टानों पर
KISI KI NARMGOEE KO KOI SAMJHE NA KAMZORI
BANAATA HAI
NISHAAn PAANI JO GIRTA HAI CHATTANON PAR
कहाँ से हम कहाँ तक आ गए पैंसठ ही बरसों में
सदी का बोझ है अब हाल के बोसीदा शानों पर
KAHAN SE HAM KAHAN
TAK AA GAE PAINSATH HI BARSON MEN
SADI KA BOJH HAI
AB HAAL KE BOSEEDA SHAANON PAR
ज़लालत, जुर्म, ग़ुरबत, भुखमरी, क़िस्मत है इंसाँ
की
है क़ैद इंसानियत महलों में ताले हैं ज़बानों पर
ZALAALAT JURM
GHURBAT BHUKMARI QISMAT HAI INSAAn KI
HAI QAID
INSAANIYAT MEHLON MEN TAALE HAIN ZABAANON PAR
जहाँ का रिज़्क़ हो क़िस्मत वहीं ले जाती है आख़िर
लिखा होता है नाम इंसान का गंदुम के दानों पर
JAHAN KA RIZQ HO
QISMAT WAHIN LE JAATI HAI AAKHIR
LIKHA HOTA HAI
NAAM INSAAN KA GANDUM KE DAANON PAR
सभी के अपने अपने राग, अपनी अपनी डफ़ली है
हैं शतरंजें बिछी “मुमताज़”, बाज़ी है बयानों पर
SABHI KE APNE APNE
RAAG APNI APNI DAFLI HAI
HAIN SHATRANJEN
BICHHI 'MUMTAZ' BAAZI HAI BAYAANON PAR
बरहना – नग्न, रक़्स – नृत्य, त’अस्सुब – भेदभाव, गंदुम – गेहूँ, मशकूक – दिल में शक लिए हुए, नर्मगोई – नरमी से बात करना,
Comments
Post a Comment