ग़ज़ल - हौसले का ले के तेशा बेबसी पर वार कर

हौसले का ले के तेशा बेबसी पर वार कर
अपनी हर मंज़िल की ख़ातिर रास्ता हमवार कर
HAUSLE KA LE KE TESHA BEBASI PAR WAAR KAR
APNI HAR MANZIL KI KHAATIR RAASTA HAMWAAR KAR

खो के बहर-ए-मौजज़न में ख़ुद भी हो जा बेकराँ
जीत ले उल्फ़त की बाज़ी तू ख़ुदी को हार कर
KHO KE BEHR E MAUJZAN MEN KHUD BHI HO JA BEKARAAn
JEET LE ULFAT KI BAAZI TU KHUDI KO HAAR KAR

है तक़ाज़ा वक़्त का उट्ठे नया इक इन्क़लाब
तू ज़मीर-ए-ख़्वाबज़न को आज तो बेदार कर
HAI TAQAAZA WAQT KA UTTHE NAYA IK INQELAAB
TU ZAMEER E KHWAABZAN KO AAJ TO BEDAAR KAR

मजमा-ए-अग़यार में खोया रहेगा कब तलक
मुन्फ़रिद है तू तो फिर अपना जुदा मेयार कर
MAJMA E AGHYAAR MEN KHOYA RAHEGA KAB TALAK
MUNFARID HAI TU TO PHIR APNA JUDAA ME'YAAR KAR

तार है दामन भी तेरा, खो दिया पिनदार भी
क्या तुझे हासिल हुआ अपनी अना को मार कर
TAAR HAI DAAMAN BHI TERA, KHO DIYA PINDAAR BHI
KYA TUJHE HAASIL HUA APNI ANAA KO MAAR KAR

ज़ुल्म के रेग-ए-रवाँ में नूर की बारिश भी ला
है मोहब्बत इक ख़ता तो ये ख़ता हर बार कर
ZULM KE REG E RAWAAN MEN NOOR KI BAARISH BHI LAA
HAI MOHABBAT IK KHATAA TO YE KHATAA HAR BAAR KAR

ख़ौफ़ के इस सायबाँ से तो भली है वो तपिश
जीना है तो मौत से खुल कर निगाहें चार कर
KHAUF KE IS SAAYBAAn SE TO BHALI HAI WO TAPISH
JEENA HAI TO MAUT SE KHUL KAR NIGAAHEN CHAAR KAR

अपनी हस्ती को मिटा दे मर्ज़ी-ए-माशूक़ पर
आशिक़ी के नूर से आराइश-ए-किरदार कर
APNI HASTI KO MITAA DE MARZI E MAASHOOQ PAR
AASHIQI KE NOOR SE AARAAISH E KIRDAAR KAR

किस क़दर है आम अब चेहरे बदलने का हुनर
ज़िन्दगी भी मिल रही है रूप कितने धार कर
IS QADAR HAI AAM AB CHEHRE BADALNE KA HUNAR
ZINDAGI BHI MIL RAHI HAI ROOP KITNE DHAAR KAR

मंज़िलें मुमताज़ ख़ुद चूमेंगी बढ़ कर तेरे पाँव
वक़्त के कोह-ए-गरां को मसलेहत से पार कर
MANZILEN 'MUMTAZ' KHUD CHOOMENGI BADH KAR TERE PAANV
WAQT KE KOH E GARAAn KO MASLEHAT SE PAAR KAR
बहर-ए-मौजज़न लहराता हुआ सागर, बेकराँ अनंत, ख़ुदी अहं,  ज़मीर-ए-ख़्वाबज़न सोता हुआ ज़मीर, बेदार जागता हुआ, मजमा-ए-अग़यार ग़ैरों की भीड़, मुन्फ़रिद अनोखा, जुदा अलग, मेयार standard, तार फटा हुआ, पिनदार इज़्ज़त, अना अहं, रेग-ए-रवाँ रेत का तूफ़ान, मर्ज़ी-ए-माशूक़ प्यारे की मर्ज़ी, आराइश-ए-किरदार चरित्र की सजावट, कोह-ए-गरां भारी पर्वत

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