नज़्म - हिसाब
हिसाब
– हिस्सा
पहला
सभी यादें, सभी सपने, सभी अरमान ले जाओ
मेरी तुम ज़िन्दगी से अपना सब सामान ले जाओ
वो रौशन दिन, उरूसी शाम, वो सब चांदनी रातें
वो खुशियाँ, वो सभी सरगोशियाँ, सब रेशमी बातें
बहारों से सजा आँगन, सितारों से सजी राहें
मोहब्बत के सभी नग़्मे, वो हसरत की सभी आहें
तुम्हारी मुन्तज़िर वो धडकनें, जो अब भी ज़िंदा
हैं
वो सारे नक्श, जो दिल की ज़मीं पर अब भी ताज़ा हैं
वो माज़ी की सुनहरी ख़ाक भी ले जाओ तुम आ कर
धड़कते लम्हों की इम्लाक भी ले जाओ तुम आ कर
अभी तक मेरे बिस्तर पर पड़ी है लम्स की ख़ुशबू
अभी तक दिल पे क़ाबिज़ है तुम्हारे प्यार का जादू
तुम्हारी गुफ़्तगू के रंग बिखरे हैं समाअत पर
तुम्हारी रेशमी आवाज़ का साया है फ़ुरसत पर
सभी वादे, सभी क़समें, वो झूठा सच अक़ीदत का
नशा वो बेक़रारी का, वो बिखरा ख़्वाब उल्फ़त का
मेरी हर एक धड़कन, जो तुम्हारी अब भी क़ैदी है
नफ़स का तार वो उलझा जो निस्बत से तुम्हारी है
मेरे दिल की हर इक धड़कन, मेरी हर सांस ले जाओ
तुम अपनी हर अमानत, अपना हर एहसास ले जाओ
वो ज़ंजीरें वफ़ा की, इश्क़ का ज़िन्दान ले जाओ
मेरी तुम ज़िन्दगी से अपना सब सामान ले जाओ
हिसाब
– हिस्सा
दूसरा
पड़ा है जो तुम्हारे पास, वो असबाब लौटा दो
तुम्हारे पास मेरी कितनी ही चीज़ें पड़ी होंगी
नज़र में होंगी कुछ, कुछ तीरा कोनों में गडी होंगी
बहुत से क़ीमती लम्हे हैं, कुछ ग़म नाक पल भी हैं
मोहब्बत की निगाहें भी हैं, कुछ अबरू के बल भी हैं
तुम्हारी तैरती नज़रों की कुछ रंगीं क़बाएं हैं
हया में भीगती सी सिमटी सिमटी कुछ अदाएं हैं
किसी कोने में बिखरा सा कोई एहसास भी होगा
दबा यादों की परतों में कोई क़रतास भी होगा
वो काग़ज़ जिस पे लिक्खे थे मेरी चाहत के अफ़साने
मुझे लौटा दो मेरे ग़म के वो आबाद वीराने
मेरे माज़ी की वो हसरत भरी रातों की तारीकी
हर इक एहसास, हर इक लम्स, हर इक याद माज़ी की
मेरा हर ज़ख्म, सारे आबले, सारी ख़राशें भी
मेरी दम तोडती खुशियाँ, मोहब्बत की वो लाशें भी
मचलता दर्द, वो जज़्बात का सीमाब लौटा दो
जो मुमकिन हो, तो अब अश्कों का वो सैलाब लौटा दो
उरूसी-लाल रंग की, सरगोशियाँ-फुसफुसाना, मुन्तज़िर-इंतज़ार में, इम्लाक-जायदाद, लम्स-स्पर्श, गुफ़्तगू-बातचीत, समाअत-सुनने की
क्षमता, अक़ीदत-श्रद्धा, नफ़स-सांस, ज़िन्दान-कारागार, असबाब-ज़रुरत का सामान, ग़म नाक-दुखदाई, अबरू-भवें, क़बाएं-कुर्ते, हया-शर्म, क़रतास-काग़ज़, माज़ी-भूतकाल, तारीकी-अँधेरा, लम्स-स्पर्श, आबले-छाले, ख़राशें-खरोंचें, सीमाब-पारा
waah zabzrdast mumtaz aapa
ReplyDeleteMumtajji...
ReplyDeletejaisi kashish,najakat aapke look me hai hubahu vaisihi aapke najm me bhi hai.