ग़ज़ल - बिखर जाए न ऐ जानम मोहब्बत का ये शीराज़ा

लहू अब तक टपकता है, अभी हर ज़ख़्म है ताज़ा
बिखर जाए न ऐ जानम मोहब्बत का ये शीराज़ा
LAHOO AB TAK TAPAKTA HAI ABHI HAR ZAKHM HAI TAAZA
BIKHAR JAAE NA AYE JAANAM MOHABBAT KA YE SHEERAZA

अगर उस पार जाना है तो लहरों में उतर जाओ
किनारों से कहाँ हो पाएगा तूफ़ाँ का अंदाज़ा
AGAR US PAAR JAANA HAI TO LEHRON MEN UTAR JAAO
KINAARON SE KAHAN HO PAAEGA LEHRON KA ANDAAZA

सियाही फैलती जाएगी आख़िर को फ़ज़ाओं में
अभी तो सज रहा है रात के रुख़सार पर ग़ाज़ा
SIYAAHI PHAILTI JAAEGI AAKHIR KO FAZAAON MEN
ABHI TO SAJ RAHA HAI RAAT KE RUKHSAAR PE GHAAZA

कोई कोहसार था शायद हमारी राह में हाइल
पलट आई सदा काविश की, अरमानों का आवाज़ा
KOI KOHSAAR THA SHAAYAD HAMAARI RAAH MEN HAAIL
PALAT AAI SADA KAAVISH KI ARMAANON KA AAWAZA

बिखरना, टूटना, बनना, संवरना, फिर बिगड़ जाना
उठाना ही पड़ेगा ज़ीस्त को हसरत का ख़मियाज़ा
BIKHARNA TOOTNA BAN NA SANWARNA PHIR BIGAD JAANA
UTHAANA HI PADEGA ZEEST KO HASRAT KA KHAMIYAAZA

ये तूफ़ाँ तो हमारी ज़ात के अंदर उतर आया
कहा किसने उम्मीदों से, खुला रक्खें वो दरवाज़ा
YE TOOFAA.N TO HAMAARI ZAAT KE ANDAR UTAR AAYA
KAHA KIS NE UMMEEDON SE KHULA RAKKHEN WO DARWAAZA

तपिश ऐसी थी लू की, गुल तो गुल, ग़ुन्चे भी कुम्हलाए
बचा कब गुलशन-ए-हस्ती में कोई फूल भी ताज़ा
TAPISH AISI THI LOO KI GUL TO GUL GHUNCHE BHI KUMLAAE
BACHA KAB GULSHAN E HASTI MEN KOI PHOOL BHI TAAZA

किया जाएगा फिर मुमताज़ ख़ुशियों का तनासुब भी
अभी तो कर रही है ज़िन्दगी ज़ख़्मों का अंदाज़ा
KIYA JAAEGA PHIR 'MUMTAZ' KHUSHIYON KA TANASUB BHI
ABHI TO KAR RAHI HAI ZINDAGI ZAKHMON KA ANDAAZA


शीराज़ा - वो फीता या धागा, जिससे किताब के पन्ने बंधे हों, रुख़सार गाल, ग़ाज़ा गालों पर लगाने की लाली, rouge, कोहसार पहाड़, हाइल रुकावट बना हुआ, सदा आवाज़, काविश तलाश, ज़ीस्त ज़िन्दगी, तनासुब balance

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