तरही ग़ज़ल - दश्त-ओ-सहरा-ओ-समंदर सभी घर ले आए
दश्त-ओ-सहरा-ओ-समंदर
सभी घर ले आए
अबके हम बाँध के क़दमों
में सफ़र ले आए
DASHT O SEHRA O SAMANDAR SABHI GHAR LE AAE
AB KE HAM BAANDH
KE QADMON MEN SAFAR LE AAE
डर के तुग़ियानी से ठहरे
हैं जो, कह दो उस ने
हम समंदर में जो उतरे
तो गोहर ले आए
DAR KE TUGHYAANI
SE THEHRE HAIN JO KEH DO UN SE
HAM SAMANDAR MEN
JO UTRE TO GOHAR LE AAE
कब तही दस्त हम आए हैं
तेरी महफ़िल से
ज़ख़्म ले आए, कभी ख़ून-ए-जिगर ले आए
KAB TAHI DAST HAM
AAE HAIN TERI MEHFIL SE
ZAKHM LE AAE KABHI
KHOON E JIGAR LE AAE
हो रही थी अभी परवाज़
बलन्दी की तरफ़
लोग ख़ातिर के लिए तीर-ओ-तबर
ले आए
HO RAHI THI ABHI
PARWAAZ BALANDI KI TARAF
LOG KHAATIR KE
LIYE TEER O TABAR LE AAE
कोई दावा, न इरादा, न तमन्ना, न हुनर
हम में वो बात कहाँ है
कि असर ले आए
KOI DAAVA NA
IRAADA NA TAMANNA NA HUNAR
HAM MEN WO BAAT
KAHAN HAI KE ASAR LE AAE
धज्जियाँ उड़ती रहीं गो
मेरे बाल-ओ-पर की
हम ने परवाज़ जो की शम्स-ओ-क़मर
ले आए
DHAJJIYAN UDTI
RAHIN GO MERE BAAL O PAR KI
HAM NE PARWAAZ JO KI SHAMS O QAMAR LE AAE
है यहाँ कितनी तजल्ली
कि नज़र क़ासिर है
मेरे जज़्बात मुझे जाने
किधर ले आए
HAI YAHAN KITNI
TAJALLI KE NAZAR QAASIR HAI
MERE JAZBAAT MUJHE
AAJ KIDHAR LE AAE
देखने भी न दिया जिसने
उसे जाते हुए
हम कि हमराह वही दीदा-ए-तर
ले आए
DEKHNE BHI NA DIYA
JIS NE USE JAATE HUE
HAM KE HAMRAAH
WAHI DEEDA E TAR LE AAE
अब यहाँ चारों तरफ़ ख़ून
की बारिश होगी
“उसने बोए थे जो ख़ंजर वो समर ले आए”
AB HAR IK SIMT
YAHAN KHOON KI BAARISH HOGI"
"US NE BIE THE JO KHANJAR WO SAMAR
LE AAE
राह में अपनी अँधेरों
का बसेरा था मगर
हम अँधेरों से भी “मुमताज़” सहर ले आए
RAAH MEN APNI ANDHERON KA BASERA THA MAGARHAM ANDHERON SE BHI 'MUMTAZ' SAHER LE AAE
दश्त-ओ-सहरा-ओ-समंदर – जंगल, रेगिस्तान और सागर, तुग़ियानी – लहरों का उतार चढ़ाव, गोहर – मोती, तही दस्त – ख़ाली हाथ, परवाज़ – उड़ान, बलन्दी – ऊंचाई, तबर – कुल्हाड़ी, गो – हालाँकि, शम्स-ओ-क़मर – सूरज और चाँद, तजल्ली – रौशनी, क़ासिर – मजबूर (देख नहीं सकती), हमराह – अपने साथ, दीदा-ए-तर – भीगी आँख, समर – फल, सहर – सुबह
Comments
Post a Comment