औरत की कहानी (WOMEN'S DAY PAR......................)

कभी ग़ैरों ने लूटा है, कभी अपनी ही ग़ैरत ने
ये औरत की कहानी खून से लिक्खी है क़ुदरत ने

ये वो औरत, के जिस के दम से दुनिया है, ज़माना है
ये वो औरत, कि जिस ने प्यार का बाँटा ख़ज़ाना है
कभी माँ बन के आँचल में जो बेटों को छुपाती है
मगर वो कोख में ही क़त्ल फिर भी कर दी जाती है

बहन बन कर दुआएं मांगती है भाई की ख़ातिर
बहन वो बेच दी जाती है पाई पाई की ख़ातिर
मोहब्बत के सिले में कैसे ये इनआम देते हैं
हैं कैसे भाई, जो बहनों की इज्ज़त लूट लेते हैं

निगाहों की चुभन, हैवानियत, और आबरू रेज़ी
जिगर पर मर्द की फ़िरऔनियत की बर्क़ अंगेज़ी
बदन की धज्जियाँ उडती हैं तो दिल खून रोता है
यहाँ निस्वानियत का बस यही अंजाम होता है

सफ़र करती है हर दम तेज़ तलवारों के धारे पर
है इस का हर क़दम माँ, बाप, भाई के इशारे पर
कि इस के वास्ते आसाँ नहीं है अश्क पीना भी
मोहब्बत जुर्म, औरत के लिए है जुर्म जीना भी

अगर ये सर झुका कर सब सहन कर ले, तो देवी है
ज़रा सी आह भी कर दे, तो ये शैताँ की बेटी है
न जिस का अपना हँसना है, न जिस का अपना रोना है
ये मर्दों के बनाए इस जहाँ में इक खिलौना है

कभी खा डालता है मुफ़लिसी का राक्षस इस को
फ़रोश ए जिस्म देता है कभी काला क़फ़स इस को
ज़रुरत रूप सौ ले कर इसे उरियाँ बनाती है
शिकम की आग में अक्सर ये अपना तन जलाती है

कहाँ हैं रहबरान ए क़ौम, ठेकेदार मिल्लत के
तमाशे देख लें आ कर ज़रा वो अपनी ग़ैरत के
तुम्हारी बेटियाँ, बहनें तुम्हारी, और ये माएँ
बताओ तो ज़रा, सर को छुपाने ये कहाँ जाएँ


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