ग़ज़ल - कैसा अजब ख़ुमार है, कैसा ये ख़्वाब है
कैसा अजब ख़ुमार है, कैसा ये ख़्वाब है
इस लम्स से तो रूह तलक
आब आब है
KAISA AJAB KHUMAAR HAI KAISA YE KHWAAB HAI
IS LAMS SE TO ROOH
TALAK AAB AAB HAI
हैं लाजवाब आप ये तस्लीम है हमें
लेकिन कहाँ हुज़ूर हमारा जवाब है
HAIN LAAJAWAAB AAP YE TASLEEM HAI HAMEN
LEKIN KAHAN HUZOOR HAMARA JAWAAB HAI
हैं लाजवाब आप ये तस्लीम है हमें
लेकिन कहाँ हुज़ूर हमारा जवाब है
HAIN LAAJAWAAB AAP YE TASLEEM HAI HAMEN
LEKIN KAHAN HUZOOR HAMARA JAWAAB HAI
उल्फ़त करोगे सर्फ़ तो
उल्फ़त कमाओगे
रिश्तों की इस किताब
का सीधा हिसाब है
ULFAT KAROGE SARF
TO ULFAT KAMAAOGE
RISHTON KI IS
KITAAB KA SEEDHA HISAAB HAI
बीनाई ज़ख़्म ज़ख़्म, निगाहें लहू लहू
आँखों ने अबके देख लिया
कैसा ख़्वाब है
BEENAAI ZAKHM
ZAKHM NIGAAHEN LAHU LAHU
AANKHON NE AB KE DEKH LIYA KAISA KHWAAB HAI
नाआशना है ज़ीस्त की सारी इबारतें
नाख़्वांदा हैं हुरूफ़, ये कैसी किताब है
NAA'AASHNA HAI
ZEEST KI SAARI IBAARATEN
NAAKHWAANDA HAIN
HUROOF YE KAISI KITAAB HAI
जलती है सांस सांस, सुलगता है सारा तन
लगता है मुझ से लिपटा
हुआ इक शेहाब है
JALTI HAI SAANS
SAANS SULAGTA HAI SAARA TAN
LAGTA HAI MUJH SE
LIPTA HUA IK SHEHAAB HAI
भटका रहा है दूर तलक
मुझ को रात-दिन
सहरा-ए-ज़ात में जो जुनूँ
का सराब है
BHATKA RAHA HAI
DOOR TALAK MUJH KO RAAT DIN
SEHRA E ZAAT MEN
JO JUNOON KA SARAAB HAI
“मुमताज़” जी संभाल के रखिए मता-ए-ज़ात
चलिये ज़रा संभल के, ज़माना ख़राब है
'MUMTAZ' JI
SAMBHAL KE RAKHIYE MATAA E ZAAT
CHALIYE ZARA
SAMBHAL KE ZAMAANA KHARAAB HAI
लम्स – स्पर्श, सर्फ़ – ख़र्च, बीनाई – दृष्टि, नाआशना – अजनबी, ज़ीस्त – ज़िन्दगी, इबारत – text, नाख़्वांदा – न पढे जा सक्ने लायक, हुरूफ़ – अक्षर, शेहाब – अंगारा, सहरा-ए-ज़ात – हस्ती का
रेगिस्तान, सराब – मृगतृष्णा, जुनूँ – दीवानगी, मता – पूँजी/
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