ग़ज़ल - चार सू तारीकियाँ, सब हसरतें वीरान हैं
चार सू तारीकियाँ, सब हसरतें वीरान हैं
जिस्म के अंधे नगर के
रास्ते सुनसान हैं
chaar soo taarikiyan sab hasraten veeraan hain
jism ke andhe nagar ke raaste sunsaan hain
जीत जाते हम मगर तलवार हम ने फेंक दी
ख़ुद ही हम अपनी शिकस्त-ए-ज़ात
का ऐलान हैं
Jeet jaate ham magar talwar hamne phenk di
khud hi ham apni
shikast e zaat ka ailaan hain
चार क़दमों पर है मंज़िल, अब तुझे ये क्या हुआ
क्यूँ नज़र धुँधला गई
है, क्यूँ ख़ता औसान हैं
chaar qadmon par
hai manzil ab tujhe ye kya hua
kyun nazar dhundla gai hai kyun khata ausaan hain
आरज़ू, रिश्ते, मोहब्बत, रंज-ओ-ग़म, एहसास, ख़्वाब
इस किताब-ए-ज़िन्दगी के
कितने ही उनवान हैं
aarzoo rishte
mohabbat ranj o gham ehsaas khwaab
is kitaab e zindagi ke kitne hi unwaan hain
कैसी साहिर है ये हसरत, कैसा ये एहसास है
वो उधर हैरतज़दा हैं, हम इधर हैरान हैं
kaisi saahir hai
ye hasrat kaisa ye ehsaas hai
wo udhar hairatzada hain ham idhar hairaan hain
फिर तसव्वर उड़ चला, तख़ईल फिर आज़ाद है
बिखरी ज़ंजीरें हैं और
ख़ाली पड़े ज़िंदान हैं
phir tasawwar ud
chala takheel phir aazad hai
bikhri zanjeeren hain aur khaali pade zindaan hain
आरज़ू कैसी जगह ले आई है हम को जहाँ
दूर तक बिखरे हुए सब
रास्ते अंजान हैं
aarzoo kaisi jagah
le aai hai ham ko jahan
door tak bikhre hue sab raaste anjaan hain
चल पड़ेंगे कल नई इक राह पर “मुमताज़” फिर
चार दिन के वास्ते इस
ज़ीस्त के मेहमान हैं
chal padenge kal
nai ik raah par 'mumtaz' phir
chaar din ke waaste is zeest ke mehmaan hain
चार सू – चारों तरफ़, तारीकियाँ – अँधेरे, शिकस्त – हार, ख़ता औसान होना – होश ठिकाने ना रहना, उनवान – शीर्षक, साहिर – जादूगर, तसव्वर – कल्पना, तख़ईल – ख़याल, ज़िंदान – क़ैदख़ाना, ज़ीस्त – ज़िन्दगी
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