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दे कर सदाएं बारहा , छुप कर वो मुस्कराए क्यूँ

दे   कर   सदाएं   बारहा , छुप   कर   वो   मुस्कराए   क्यूँ निस्बत   नहीं   कोई   तो   फिर , हम   से   नज़र   चुराए   क्यूँ रख   आए   उस   के   दर   पे   हम   सब   निस्बतें , सारी ख़ुशी वो   अपने   इल्तेफात   का   एहसान   भी   जताए   क्यूँ जाँबारी का   जूनून   तो   लाज़िम है   फ़र्द फ़र्द   में रस्ता दिखाए   जो   हमें   सर   भी   वही   कटाए   क्यूँ कैसी   ये   जुस्तजू   सी   है   उस   दश्त   ए ख़ार ख़ार   में मजरूह   बारहा   हुआ , दिल   फिर   वहीँ   पे   जाए   क्यूँ तारीकी   जब   मिटी   तो   फिर   ज़ाहिर   हुआ   हर   इक   शिगाफ़ मेरी   शिकस्ता   रूह   में   इतने   दिए   जलाए   क्यूँ अब   के   जुनूँ ने   तोड़   दीं , इश्क़   ओ   वफ़ा   की   बेड़ियाँ रखा   ही   क्या   है   अब   यहाँ , अब   वो   यहाँ   पे   आए   क्यूँ आया   अना   की   ज़द   में   तो   हर   जज़्बा   जाँ ब हक़ हुआ बैठे   हैं   फिर   मुंडेर   पे   तन्हाइयों   के   साए   क्यूँ रग़बत   न   कोई   वास्ता , दर   है   न   कोई   आस्तां " बैठे   हैं   रहगुज़र

उस का शेवा कि सितम तोड़ो, सताते जाओ

उस   का   शेवा कि   सितम   तोड़ो , सताते   जाओ और   तकाज़ा , कि   हर   इक   ज़ुल्म   उठाते   जाओ क्या   मज़ा   जीने   का , सीखा   न   जो   मरने   का   हुनर मौत   से   भी   तो   ज़रा   आँख   मिलाते   जाओ उस   की   आँखों   में   गिरफ़्तार   हैं   सौ   मैख़ाने दम   ब दम   बादा ए मस्ती   में   नहाते   जाओ वो   जो   आया   तो   इन्हीं   अश्कों   में   ढूँढेगा   तुम्हें पानियों   पर   भी   निशाँ   कुछ   तो   बनाते   जाओ एक   इक   याद   ए   मोहब्बत , एक   इक   वस्ल   का   पल जाते   जाते   ये   सभी   शमएँ बुझाते   जाओ दुश्मनी   करनी   है   तुम   को , तो   ज़रा   जम   के   करो " जाते   जाते   कोई   इलज़ाम   लगाते   जाओ " और   ' मुमताज़ ' तुम्हें   आता   है   क्या   इस   के   सिवा कितने   एहसान   किये   हम   प् ,   गिनाते   जाओ اس   کا   شیوا , کہ   ستم   توڑو , ستاتے   جاؤ اور   تقاضہ , کہ    ہر   اک   ظلم   اٹھاتے   جاؤ کیا   مزہ جینے   کا , سیکھا   نہ   جو   مرنے   کا   ہنر موت   سے   بھی   تو   ذرا   آنکھ