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dard e wahshat ko tabassum kii qaba dete hain #Mumtaz Aziz Naza New #Ghazal
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#New Ghazal Recited by #Mumtaz Aziz Naza rang bhare khwaabon kii dhanak ...
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A #Ghazal by #Mumtaz shab e taareek hai #Urdu #Poetry #Shairi #Shayeri #...
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FB live 10-08-2020 #Urdu Poetry #Shayri #ghazal #Mumtaz Naza #Mumtaz #Az...
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जंग जब तूफ़ाँ से हो तो क्या किनारा देखना
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जंग जब तूफ़ाँ से हो तो क्या किनारा देखना बैठ कर साहिल पे क्या दरिया का धारा देखना माँगते हैं ख़ैर तेरी सल्तनत में रात दिन देखना , बस इक नज़र ये भी ख़ुदारा देखना ये तुम्हारा क़हर तुम को ही न ले डूबे कहीं तुम ज़रा अपने मुक़द्दर का इशारा देखना क्या बताएँ , किस क़दर दिल पर गुज़रता है गरां बार बार इन हसरतों को पारा पारा देखना हौसलों को भी सहारा हो किसी उम्मीद का ऐ नुजूमी मेरी क़िस्मत का सितारा देखना बारहा “मुमताज़” नम कर जाता है आँखें मेरी मुड़ के हसरत से हमें उसका दोबारा देखना ख़ुदारा – ख़ुदा के लिए , क़हर – बहुत तेज़ ग़ुस्सा , गरां – भारी , पारा पारा – टुकड़े टुकड़े , नुजूमी – ज्योतिषी