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#New Ghazal Recited by #Mumtaz Aziz Naza rang bhare khwaabon kii dhanak ...
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A #Ghazal by #Mumtaz shab e taareek hai #Urdu #Poetry #Shairi #Shayeri #...
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FB live 10-08-2020 #Urdu Poetry #Shayri #ghazal #Mumtaz Naza #Mumtaz #Az...
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जंग जब तूफ़ाँ से हो तो क्या किनारा देखना
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जंग जब तूफ़ाँ से हो तो क्या किनारा देखना बैठ कर साहिल पे क्या दरिया का धारा देखना माँगते हैं ख़ैर तेरी सल्तनत में रात दिन देखना , बस इक नज़र ये भी ख़ुदारा देखना ये तुम्हारा क़हर तुम को ही न ले डूबे कहीं तुम ज़रा अपने मुक़द्दर का इशारा देखना क्या बताएँ , किस क़दर दिल पर गुज़रता है गरां बार बार इन हसरतों को पारा पारा देखना हौसलों को भी सहारा हो किसी उम्मीद का ऐ नुजूमी मेरी क़िस्मत का सितारा देखना बारहा “मुमताज़” नम कर जाता है आँखें मेरी मुड़ के हसरत से हमें उसका दोबारा देखना ख़ुदारा – ख़ुदा के लिए , क़हर – बहुत तेज़ ग़ुस्सा , गरां – भारी , पारा पारा – टुकड़े टुकड़े , नुजूमी – ज्योतिषी
तरब का पर्दा भी आख़िर इसे बचा न सका
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तरब का पर्दा भी आख़िर इसे बचा न सका चिराग़ बुझने से पहले भी लपलपा न सका हज़ार वार किए जम के रूह को कुचला ज़माना हस्ती को मेरी मगर मिटा न सका सितम शआर ज़माने का ज़ब्त टूट गया जो मेरे ज़ब्त की गहराइयों को पा न सका जता जता के जो एहसान दोस्तों ने किए मेरा ज़मीर ये बार-ए-गरां उठा न सका जहाँ जुनून मेरा मुझ को खेंच लाया है वहाँ तलक तो तसव्वर भी तेरा जा न सका क़लम भी हार गया , लफ़्ज़ साथ छोड़ गए तेरा वजूद किसी दायरे में आ न सका छुपा के दिल की कदूरत गले मिलें “मुमताज़” हमें हुनर ये अदाकारियों का आ न सका तरब – ख़ुशी , सितम शआर – जिसका चलन सितम करना हो , बार-ए-गरां – भारी बोझ , जुनून – सनक , तसव्वर – कल्पना , कदूरत – मैल , अदाकारी – अभिनय