Posts

ज़हन-ओ-दिल पर इश्क़ का जादू नज़र आने लगे

ज़हन-ओ-दिल पर इश्क़ का जादू नज़र आने लगे हो मोअत्तर दीद और ख़ुशबू नज़र आने लगे बात भी हम डर के करते हैं , कि अब किस बात में   जाने किस को कौन सा पहलू नज़र आने लगे ढालना होगा पसीने में लहू को इस तरह बख़्त पर इंसान का क़ाबू नज़र आने लगे ऐसा लगता है कि अब हर तीरगी छंट जाएगी आज फिर उम्मीद के जुगनू नज़र आने लगे जाग उठी शैतानियत , अब नेकियों की ख़ैर हो हर तरफ़ ख़ंजर ब कफ़ साधू नज़र आने लगे आ गई शायद वही मंज़िल मोहब्बत की , जहाँ उस का ही चेहरा हमें हर सू नज़र आने लगे एक बस इंसानियत नायाब है इस देश में अब यहाँ बस मुस्लिम-ओ-हिन्दू नज़र आने लगे इस क़दर खो जाए तेरी ज़ात में मेरा वजूद " काश ये भी हो कि मुझ में तू नज़र आने लगे" जब बरहना रक्स पर आमादा हो फ़ितना गरी हर तरफ़ "मुमताज़" हा-ओ-हू नज़र आने लगे मोअत्तर – ख़ुशबू में तर , दीद – दृष्टि , बख़्त – भाग्य , तीरगी – अँधेरा , ख़ंजर ब कफ़ – हाथ में ख़ंजर लिए , हर सू – हर तरफ़ , नायाब – दुर्लभ , बरहना – वस्त्रहीन , रक्स – नृत्य , फ़ितना गरी – फ़साद फैलाने की प्रवृत्ति , हा-ओ-हू – रोना पीटना zeh

इस तरक़्क़ी का हमें इनआम ये कैसा मिला

इस तरक़्क़ी का हमें इनआम ये कैसा मिला दौर - ए - हाज़िर में हमें हर आदमी तन्हा मिला हर तअल्लुक़ ख़ाम , हर इक रिश्ता पेचीदा मिला मस्लेहत के रंग से ताबीर हर क़िस्सा मिला चार सू बिखरा हुआ एहसास का मलबा मिला लौट कर आए हैं जब भी , दिल का घर टूटा मिला उम्र भर लिखते रहे लेकिन किताब - ए - ज़ीस्त का जब भी देखा है पलट कर , हर वरक़ सादा मिला गौहर - ए - दिल , विरसा यादों का , ख़ज़ाना फ़िक्र का देख लो , बहर - ए - हवादिस से हमें क्या क्या मिला शोख़ियाँ , मासूमियत , स्कूल , झूला , बारिशें कितनी यादें साथ लाया , जब कोई बिछड़ा मिला उल्फ़तें हों , नफ़रतें हों , कर्ब हो , या हो ख़ुशी हम ने हर जज़्बा संभाला , जो मिला , जैसा मिला ज़िंदगी से गो शिकायत है , मगर सच तो ये है आज तक " मुमताज़ " हम ने जब भी जो चाहा , मिला ख़ाम - कच्चा , पेचीदा – काम्प्लिकेटेड , मस्लेहत – पॉलिसी ,   ताबीर – लिखा हुआ , सू – तरफ़ , ज़ीस्त – ज़िंदगी , वरक़ – पन्ना , गौहर - मोती , विरसा – विरासत

है अधूरा आदमीयत का निज़ाम

है अधूरा आदमीयत का निज़ाम हर बशर है आरज़ूओं का ग़ुलाम आज फिर देखा है उस ने प्यार से आज फिर दिल आ गया है ज़ेर-ए-दाम तोडना होगा तअस्सुब का ग़ुरूर है ज़रूरी इस नगर का इनहेदाम हाय रे एहल-ए-ख़िरद की चूँ -ओ-चीं वाह , ये दीवानगी का एहतेशाम थक गए हो क्यूँ अभी से दोस्तो बस , अभी तक तो चले हो चार गाम देखते हैं , आगही क्या दे हमें अब तलक तो आरज़ू है तशनाकाम आदमी की बेकराँ तन्हाइयाँ चार सू फैला हुआ ये अज़दहाम ज़िन्दगी से जंग अब हम क्या करें रह गई बस हाथ में ख़ाली नियाम एक भी अपना नज़र आता नहीं आ गया "मुमताज़" ये कैसा मक़ाम निज़ाम – सिस्टम , बशर – इंसान , ज़ेर-ए-दाम – जाल में , तअस्सुब – भेद-भाव , इनहेदाम – ढा देना , एहल-ए-ख़िरद – अक़्ल वाले , चूँ-ओ-चीं - नुक्ता चीनी , एहतेशाम – शान ओ शौकत , गाम – क़दम , आगही – ज्ञान , तशनाकाम – प्यासी , बेकराँ – अनंत , चार सू – चारों तरफ़ , अज़दहाम – भीड़ , नियाम – मियान