Posts

हसरतें जगाने का मन नहीं किया मेरा

हसरतें जगाने का मन नहीं किया मेरा ये नगर बसाने का मन नहीं किया मेरा حسرتیں جگانے کا من نہیں کیا میرا یہ نگر بسانے کا من نہیں کیا میرا ख़ून का हर इक धब्बा कितना ख़ूबसूरत था ज़ख़्म-ए-दिल छुपाने का मन नहीं किया मेरा خون کا ہر اِک دھبہ کتنا خوبصورت تھا زخمِ دل چھپانے کا دل نہیں کیا میرا उस को जीत लेने को एक ज़र्ब काफ़ी थी बस उसे हराने का मन नहीं किया मेरा اُس کو جیت لینے کو ایک ضرب کافی تھی بس اسے ہرانے کا من نہیں کیا میرا तीरगी की ये शिद्दत कम तो ख़ैर क्या होती आज दिल जलाने का मन नहीं किया मेरा تیرگی کی یہ شدت کم تو خیر کیا ہوتی آج دل جلانے کا من نہیں کیا میرا उस के हर इरादे पर था यक़ीं मुझे लेकिन उस को आज़माने का मन नहीं किया मेरा اُس کے ہر ارادے پر تھا یقیں مجھے لیکن اُس کو آزمانے کا دل نہیں کیا میرا ले गया वो साथ अपने सारे सुर मोहब्बत के फिर वो गीत गाने का मन नहीं किया मेरा لے گیا وہ ساتھ اپنے سارے سُر محبت کے پھر وہ گیت گانے کا من نہیں کیا میرا आँधियाँ हक़ीक़त की तेज़ थीं बहुत लेकिन क़स्र-ए-ख़्वाब ढाने का मन नहीं किया मेरा آندھیاں ح

लगा कर दिल की बाज़ी राहत-ओ-तस्कीन खो डालीं

लगा कर दिल की बाज़ी राहत-ओ-तस्कीन खो डालीं अनाड़ी है , वफ़ा के खेल में आँखें भिगो डालीं لگا کر دل کی بازی راحت و تسکین کھو ڈالیں اناڑی ہے، وفا کے کھیل میں آنکھیں بھگو ڈالیں कोई कोंपल तमन्ना की उभरती ही नहीं यारो यहाँ तन्हाइयों की कितनी फ़स्लें हम ने बो डालीं کوئی کونپل تمنا کی ابھرتی ہی نہیں یارو یہاں تنہائیوں کی کتنی فصلیں ہم نے بو ڈالیں सुनहरी सुबह की किरनों ने चूमा है उन्हें आ कर शब-ए-बेताब ने जो शबनमी लड़ियाँ पिरो डालीं سنہری صبح کی کرنوں نے چوما ہے انہیں آ کر شبِ بےتاب نے جو شبنمی لڑیاں پرو ڈالیں लिया है इंतक़ाम ऐसे भी अक्सर हम ने तूफ़ाँ से किनारों तक पहुँच कर कश्तियाँ ख़ुद ही डुबो डालीं لیا ہے انتقام ایسے بھی اکثر ہم نے طوفاں سے کناروں تک پہنچ کر کشتیاں خود ہی ڈبو ڈالیں मुझे तनहाई की सौग़ात दी , फिर मेरी ख़िल्वत के हर इक लम्हे में कितनी कर्ब की सदियाँ समो डालीं مجھے تنہائی کی سوغات دی، پھر میری خلوت کے ہر اک لمحے میں کتنی کرب کی صدیاں سمو ڈالیں कोई क़ीमत लगा पाया कहाँ इन की मुक़द्दर भी निगह ने सोज़न-ए-मिज़गाँ में जो लड़ियाँ पिरो डालीं ک

क्या मिला तश्नालबी से, आजिज़ी से क्या मिला

क्या मिला तश्नालबी से , आजिज़ी से क्या मिला औरतों को ख़ल्क़ की इस महवरी से क्या मिला کیا ملا تشنہ لبی سے عاجزی سے کیا ملا عورتوں کو خلق کی اس مہوری سے کیا ملا हुस्न-ए-लामहदूद की इक बेनियाज़ी के सिवा आशिक़ी से क्या मिला है , बन्दगी से क्या मिला حسنِ لامحدود کی اک بےنیازی کے سوا عاشقی سے کیا ملا ہے، بندگی سے کیا ملا कोई क्यूँ सुनता हमारी बेज़ुबानी की सदा इक घुटन है , और हम को ख़ामुशी से क्या मिला کوئی کیوں سنتا ہماری بےزبانی کی صدا اک گھٹن ہے، اور ہم کو خامشی سے کیا ملا झूठ , ख़ूँरेज़ी , तमाशा , तल्ख़ियाँ , बदकारियाँ क्या कहें , इंसानियत को इस सदी से क्या मिला جھوٹ، خوں ریزی، تماشہ، تلخیاں، بدکاریاں کیا کہیں، انسانیت کو اس صدی سے کیا ملا लूट कर सारा ख़ज़ाना इस को बंजर कर दिया इस ज़मीं को देख लीजे , आदमी से क्या मिला لوٹ کر سارا خزانہ اس کو بنجر کر دیا اس زمیں کو دیکھ لیجے آدمی سے کیا ملا रेगज़ारों से लिपटते आबले सुलगा किए ज़िन्दगी , तुझ को तेरी आवारगी से क्या मिला ریگزاروں سے لپٹتے آبلے سلگا کئے زندگی، تجھ کو تری آوارگی سے کیا ملا

यूँ ही थका न मेरी ज़िन्दगी गुज़र के मुझे

यूँ ही थका न मेरी ज़िन्दगी गुज़र के मुझे उतारने हैं अभी क़र्ज़ उम्र भर के मुझे मुझे बलंद उड़ानों से खौफ़ आने लगा फ़रेब याद रहे अपने बाल-ओ-पर के मुझे मिटा के बारहा तामीर मुझ को करता रहा वजूद देता रहा ज़िन्दगी बिखर के मुझे ख़फ़ा हूँ अब तो मनाने के वास्ते कब से पुकारती है मेरी ज़िन्दगी संवर के मुझे नुक़ूश छोडती जाती हैं रेशमी यादें गुज़रता जाता है हर पल उदास कर के मुझे मैं मस्लेहत के हिसारों में क़ैद हूँ कब से जूनून छोड़ गया मेरे पर कतर के मुझे मुझे पलटने न देगी मेरी अना लेकिन " बुला रहा है कोई बाम से उतर के मुझे" हयात नाम है पैहम जेहाद का यारो सुकून आएगा "मुमताज़" अब तो मर के मुझे yuN hi thaka na meri zindagi guzar ke mujhe utaarne haiN abhi qarz umr bhar ke mujhe mujhe baland udaanoN se khauf aane laga fareb yaad rahe apne baal-o-par ke mujhe mita ke barahaa taamir mujh ko karta raha wajood deta raha zindagi bikhar ke mujhe khafaa hooN ab to manaane ke waaste kab se pukaarti hai meri zindagi sanwar ke mujhe n

सारी दुनिया से उलझ कर, ग़म से टकराने के बाद

सारी दुनिया से उलझ कर , ग़म से टकराने के बाद अक़्ल तो आती है लेकिन ठोकरें खाने के बाद ساری دنیا سے الجھ کر، غم سے ٹکرانے کے بعد عقل تو آتی ہے لیکن ٹھوکریں کھانے کے بعد क्या बहारें आएंगी , गुलशन के जल जाने के बाद खिल नहीं सकता है गुल इक बार मुरझाने के बाद کیا بہاریں آئینگی گلشن کے جل جانے کے بعد کھل نہیں سکتا ہے گل اک بار مرجھانے کے بعد ज़ब्त लाज़िम है , मगर जब हद से बढ़ जाए तड़प क्यूँ छलक जाए न फिर पैमाना भर जाने के बाद ضبط لازم ہے مگر جب حد سے بڑھ جائے تڑپ کیوں چھلک جائے نہ پھر پیمانہ بھر جانے کے بعد ज़र्रे ज़र्रे पर जबीं फोड़ी तो तू हासिल हुआ तेरा दर पा ही लिया काबा-ओ-बुतख़ाने के बाद ذرے ذرے پر جبیں پھوڑی تو تو حاصل ہوا تیرا در پا ہی لیا کعبہ و بتخانے کے بعد दफ़्न रहने दो हमारी रूह का कर्ब-ए-बला ग़म का क़िस्सा क्या कहें खुशियों के अफ़साने के बाद   دفن رہنے دو ہماری روح کا کربِ بلا غم کا قصہ کیا کہیں خوشیوں کے افسانے کے بعد वक़्त-ए-रुख़सत सब्र की हम को हिदायत की , मगर फूट कर वो रो दिया फिर हम को समझाने के बाद وقتِ رخصت صبر کی ہم کو ہدایت کی مگر

रात हो तो दिल से लावा सा उबल जाता है क्यूँ

रात हो तो दिल से लावा सा उबल जाता है क्यूँ मेहर रुख़्सत हो तो फिर मेहताब जल जाता है क्यूँ رات ہو تو دل سے لاوا سا ابل جاتا ہے کیوں مہر رخصت ہو تو پھر مہتاب جل جاتا ہے کیوں वो तो देता ही रहा है दिल को वादों का फ़रेब उस के वादों से मगर ये दिल बहल जाता है क्यूँ وہ تو دیتا ہی رہا ہے دل کو وعدوں کا فریب اس کے وعدوں سے مگر یہ دل بہل جاتا ہے کیوں तीरगी तो रात की क़िस्मत में लिक्खी है , मगर मेहर ये हर रोज़ नादिम हो के ढल जाता है क्यूँ تیرگی تو رات کی قسمت میں لکھی ہے مگر مہر یہ ہر روز نادم ہو کے ڈھل جاتا ہے کیوں तुम न अपना दिल संभालो , हम कि परदे में रहें कैसा दिल है , इक झलक से ही मचल जाता है क्यूँ تم نہ اپنا دل سنبھالو، ہم کہ پردے میں رہیں کیسا دل ہے، اک جھلک سے ہی مچل جاتا ہے کیوں औरतें तो ख़ैर बेपर्दा हैं , उन का है गुनाह बच्चियों पर भी ज़िना का तीर चल जाता है क्यूँ عورتیں تو خیر بےپردہ ہیں، ان کا ہے گناہ بچیوں پر بھی زنا کا تیر چل جاتا ہے کیوں बारहा सूरज की किरनों ने किया है ये सवाल आसमाँ के रुख़ प् कालक वक़्त मल जाता है क्यूँ بارہا سورج کی

धड़कनें चुभने लगी हैं, दिल में कितना दर्द है

धड़कनें चुभने लगी हैं , दिल में कितना दर्द है टूटते दिल की सदा भी आज कितनी सर्द है बेबसी के ख़ून से धोना पड़ेगा अब इसे वक़्त के रुख़ पर जमी जो बेहिसी की गर्द है बोझ फ़ितनासाज़ियों का ढो रहे हैं कब से हम जिस की पाई है सज़ा हम ने , गुनह नाकर्द है ज़ब्त की लू से ज़मीं की हसरतें कुम्हला गईं धूप की शिद्दत से चेहरा हर शजर का ज़र्द है छीन ले फ़ितनागरों के हाथ से सब मशअलें इन दहकती बस्तियों में क्या कोई भी मर्द है ? दिल में रौशन शोला - ए - एहसास कब का बुझ गया हसरतें ख़ामोश हैं , अब तो लहू भी सर्द है अब कहाँ जाएँ तमन्नाओं की गठरी ले के हम हर कोई दुश्मन हुआ है , मुनहरिफ़ हर फ़र्द है जुस्तजू कैसी है , किस शय की है मुझ को आरज़ू मुस्तक़िल बेचैन रखता है , जुनूँ बेदर्द है   तुम तअस्सुब का ज़रा पर्दा हटा कर देख लो अब तुम्हें हम क्या बताएँ कौन दहशत गर्द है ऐसा लगता है कि सदियों से ये दिल वीरान है आरज़ूओं पर जमी " मुमताज़ " कैसी गर्द है