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मरासिम कोई जो बाहम न होंगे

मरासिम कोई जो बाहम न होंगे कोई खद्शात , कोई ग़म न होंगे गुमाँ की बस्तियाँ मिस्मार कर दो यकीं के सिलसिले मुबहम न होंगे ख़ुदा के सामने हैं सर-ब -सजदा हमारे सर कहीं भी ख़म न होंगे निकल आए हैं हम हर कशमकश से ये सदमे अब हमें जानम न होंगे हमारी क़द्र भी समझेगी दुनिया मगर तब , जब जहाँ में हम न होंगे मुक़द्दर हम ने ख़ुद अपना लिखा है सितारे हम से क्यूँ बरहम न होंगे मुझे तू जैसे चाहे आज़मा ले " मेरे जज़्बात-ए-उल्फ़त कम न होंगे" यहाँ "मुमताज़" ठहरी हैं खिज़ाएँ यहाँ अब ख़्वाब के मौसम न होंगे marasim koi jo baaham na honge koi khadshaat, koi gham na honge gumaaN ki bastiyaaN mismaar kar do yaqeeN ke silsile mubham na honge khuda ke saamne haiN sar-ba-sajdaa hamaare sar kahiN bhi kham na honge nikal aae haiN ham har kashmkash se ye sadme ab hameN jaanam na honge hamaari qadr bhi samjhegi duniya magar tab, jab jahaN meN ham na honge muqaddar ham ne khud apna likha hai sitaare ham se kyuN barham na honge muj

तश्नगी निगाहों की लम्हा भर को मिट जाए

तश्नगी निगाहों की लम्हा भर को मिट जाए सामने कभी तो वो नूर बे नक़ाब आए تشنگی نگاہوں کی لمحہ بھر کو مٹ جائے سامنے کبھی تو وہ نور بےنقاب آئے छीन लें सभी मंज़र आँख से तो मुमकिन है क़ैद से निगाहों की दिल निजात भी पाए چھین لیں سبھی منظر آنکھ سے تو ممکن ہے قید سے نگاہوں کی دل نجات بھی پائے जल के ख़ाक हो जाए रूह-ओ-क़ल्ब की दुनिया आरज़ू के सहरा में कौन आग दहकाए جل کے خاک ہو جائے روح و قلب کی دنیا آرزو کے سحرا میں کون آگ دہکائے आज तक बग़ावत पर दिल रहा है आमादा मस्लेहत मेरे दिल को जाने कब से समझाए آج تک بغاوت پر دل رہا ہے آمادہ مصلحت مرے دل کو جانے کب سے سمجھائے वादी-ए-अना का हर ज़ाविया मोअत्तर है दिल के इस घरौंदे को किस की याद महकाए وادیء انا کا ہر زاویہ معطر ہے دل کے اس گھروندے کو کس کی یاد مہکائے याद के दरीचों से बच के हम चले लेकिन दिल पे अब भी पड़ते हैं गुज़रे वक़्त के साए یاد کے دریچوں سے بچ کے ہم چلے لیکن دل پہ اب بھی پڑتے ہیں گذرے وقت کے سائے सींचते हैं अश्कों से यूँ भी दिल को हम अक्सर शायद इस बयाबाँ में फिर बहार लौट आए سینچتے ہیں اشکو

ज़हन ओ दिल इरफ़ान से सरशार होना चाहिए

ज़हन ओ दिल इरफ़ान से सरशार होना चाहिए   अब इबादत का जुदा मेयार होना चाहिए   नाम है मुस्लिम , मगर इस्लाम का ऐ दोस्तो   अब ज़ुबान-ए-दिल से भी इक़रार होना चाहिए   देख डाला है नज़र ने हर नज़ारा , अब मगर गुंबद - ए-ख़ज़रा का बस दीदार होना चाहिए   अहमद-ए-मुरसल की ज़ात-ए-पाक का जब ज़िक्र हो   रूह आसिम , बावज़ू किरदार होना चाहिए   होगा फिर "मुमताज़" दिल पर इंकेशाफ़-ए-राज़-ए-हक़ ज़हन-ओ-दिल में वो हेरा का गार होना चाहिए  

अस्बियत का ग़ुबार छट जाए

अस्बियत का ग़ुबार छट जाए तीरगी खुद में ही सिमट जाए عصبیت کا غبار   چھٹ جائے تیرگی خود میں ہی سمٹ جائے वो शजर दिल का फिर फले कैसे अपनी ही ज़ात से जो कट जाए وہ شجر دل کا پھر پھلے کیسے اپنی ہی ذات سے جو کٹ جائے जब ज़ुबां अर्ज़ ए हाल की सोचे दिल ग़ुबार ए अना से अट जाए جب زباں عرضِ حال کی سوچے دل غبارِ انا سے اٹ جائے कह दो कोई ये दश्त ए वहशत से अब मेरे रास्ते से हट जाए کہہ دو کوئی یہ دشتِ وحشت سے اب مرے راستے سے ہٹ جائے हौसला ज़र्ब दे जो लहरा कर पत्थरों का जिगर भी फट जाए حوصلہ ضرب دے جو لہرا کر پتھروں کا جگر بھی پھٹ جائے रात की ज़ुल्फ़ जब परेशाँ हो मुझ से हर तीरगी लिपट जाए رات کی زلف جب پریشاں ہو مجھ سے ہر تیرگی لپٹ جائے शब् की ख़िलवत में शोर है कैसा नींद क्यूँ बारहा उचट जाए شب کی خلوت میں شور ہے کیسا نیند کیوں بارہا اُچٹ جائے यादें "मुमताज़" जब बरस जाएं ज़हन का हर ग़ुबार छट जाए یادیں ممتازؔ جب برس جائیں ذہن کا ہر غبار چھٹ جائے

नज़्म - बाज़ार

यहाँ हर चीज़ बिकती है कहो क्या क्या ख़रीदोगे یہاں ہر چیز بکتی ہے کہو کیا کیا خریدوگے यहाँ पर मंसब-ओ-मेराज की बिकती हैं ज़ंजीरें अना को काट देती हैं ग़ुरूर-ओ-ज़र की शमशीरें यहाँ बिकता है तख़्त-ओ-ताज बिकता है मुक़द्दर भी ये वो बाज़ार है बिक जाते हैं इस में सिकंदर भी यहाँ बिकती है ख़ामोशी भी , लफ़्फ़ाज़ी भी बिकती है ज़मीर-ए-बेनवा की हाँ अना साज़ी भी बिकती है یہاں پر منصب و معراج کی بکتی ہیں زنجیریں انا کو کاٹ دیتی ہیں غرور و زر کی شمشیری یہاں بکتا ہے تخت و تاج بکتا ہے مقدر بھی یہ وہ بازار ہے، بک جاتے ہیں اس میں سکندر بھی یہاں بکتی ہے خاموشی بھی، لفاظی بھی بکتی ہے ضمیرِ بے نوا کی ہاں انا سازی بھی بکتی ہے दुकानें हैं सजी देखो यहाँ पर हिर्स-ओ-हसरत की हर इक शै मिलती है हर क़िस्म की , हर एक क़ीमत की यहाँ ऐज़ाज़ बिकता है , यहाँ हर राज़ बिकता है यहाँ पर हुस्न बिकता है , अदा-ओ-नाज़ बिकता है सुख़न बिकता है , बिक जाती है शायर की ज़रुरत भी यहाँ बिकती है फ़नकारी , यहाँ बिकती है शोहरत भी यहाँ पर ख़ून-ए-नाहक़ बिकता है , बिकती हैं लाशें भी यहाँ बिकती हैं तन मन पर पड़ी ताज़ा

शर ख़ेज़ हैं ज़माने के हालात किस क़दर

शर ख़ेज़ हैं ज़माने के हालात किस क़दर दिल में उतर गए हैं ख़राबात किस क़दर شر خیز ہیں زمانے کے حالات کس قدر دل میں اتر گئے ہیں خرابات کس قدر नफ़रत के कितने ख़ानों में बिखरा है आदमी क़ालिब को बाँट देते हैं तबक़ात किस क़दर نفرت کے کتنے خانوں میں بکھرا ہے آدمی قالب کو بانٹ دیتے ہیں طبقات کس قدر हद है कि चंद सिक्कों में बिकने लगा ज़मीर इंसाँ को तोड़ देती हैं हाजात किस क़दर حد ہے کہ چند سکوں میں بکنے لگا ضمیر انساں کو توڑ دیتی ہیں حاجات کس قدر शैतान अपनी चालों में कितना है कामयाब कम हो गए हैं दुनिया से हसनात किस क़दर شیطان اپنی چالوں میں کتنا ہے کامیاب کم ہو گئے ہیں دنیا سے حسنات کس قدر बनने लगा है अब तो हर इक राई का पहाड़ चुभने लगी दिलों को हर इक बात किस क़दर بننے لگا ہے اب تو ہر اک رائی کا پہاڑ چبھنے لگی دلوں کو ہر اک بات کس قدر तकते हैं हम फ़लक को सहर की उम्मीद में यारो तवील होने लगी रात किस क़दर تکتے ہیں ہم فلک کو سحر کی امید میں یارو طویل ہونے لگی رات کس قدر शम्स-ओ-मह-ओ-नजूम सभी हो गए क़लील “मुमताज़” हम पे तारी हैं ज़ुल्मात किस क़दर شمس و مہہ

हर किसी अपने से नालाँ, सारे बेगानों से दूर

हर किसी अपने से नालाँ , सारे बेगानों से दूर मस्लेहत तन्हा खड़ी है सारे अरमानों से दूर ہر کسی اپنے سے نالاں، سارے بیگانوں سے دور مصلحت تنہا کھڑی ہے سارے ارمانوں سے دور मुफ़लिसी गिरिया सरा है सारे इमकानों से दूर सर पटकती है तमन्ना ऊँची दूकानों से दूर مفلسی گریہ سرا ہے سارے امکانوں سے دور سر پٹکتی ہے تمنا اونچی دوکانوں سے دور बात कोई हो , फ़साने कितने बुन लेते हैं लोग चाहे जितनी हो हक़ीक़त ऐसे अफ़सानों से दूर بات کوئی ہو، فسانے کتنے بُن لیتے ہیں لوگ چاہے جتنی ہو حقیقت ایسے افسانوں سے دور मर नहीं सकती हक़ीक़त बातिलों के वार से आतिश-ए-नमरूद तो है हक़ के दामानों से दूर مر نہیں سکتی حقیقت باطلوں کے وار سے آتشِ نمرود تو ہے حق کے دامانوں سے دور सर झुकाएँ , पाँव चूमें ? यूँ कोई ऐज़ाज़ लें ? हम किसी कम ज़र्फ़ के रहते हैं अहसानों से दूर سر جھکائیں؟ پاؤں چومیں؟ یوں کوئی عیزاز لیں؟ ہم کسی کمظرف کے رہتے ہیں احسانوں سے دور क्या पता मारें वो मक्खी और गला ही काट दें ख़ैर चाहो तो हमेशा रहना नादानों से दूर کیا پتہ ماریں وہ مکھی اور گلا ہی کاٹ دیں خیر چاہو ت