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शर ख़ेज़ हैं ज़माने के हालात किस क़दर

शर ख़ेज़ हैं ज़माने के हालात किस क़दर दिल में उतर गए हैं ख़राबात किस क़दर شر خیز ہیں زمانے کے حالات کس قدر دل میں اتر گئے ہیں خرابات کس قدر नफ़रत के कितने ख़ानों में बिखरा है आदमी क़ालिब को बाँट देते हैं तबक़ात किस क़दर نفرت کے کتنے خانوں میں بکھرا ہے آدمی قالب کو بانٹ دیتے ہیں طبقات کس قدر हद है कि चंद सिक्कों में बिकने लगा ज़मीर इंसाँ को तोड़ देती हैं हाजात किस क़दर حد ہے کہ چند سکوں میں بکنے لگا ضمیر انساں کو توڑ دیتی ہیں حاجات کس قدر शैतान अपनी चालों में कितना है कामयाब कम हो गए हैं दुनिया से हसनात किस क़दर شیطان اپنی چالوں میں کتنا ہے کامیاب کم ہو گئے ہیں دنیا سے حسنات کس قدر बनने लगा है अब तो हर इक राई का पहाड़ चुभने लगी दिलों को हर इक बात किस क़दर بننے لگا ہے اب تو ہر اک رائی کا پہاڑ چبھنے لگی دلوں کو ہر اک بات کس قدر तकते हैं हम फ़लक को सहर की उम्मीद में यारो तवील होने लगी रात किस क़दर تکتے ہیں ہم فلک کو سحر کی امید میں یارو طویل ہونے لگی رات کس قدر शम्स-ओ-मह-ओ-नजूम सभी हो गए क़लील “मुमताज़” हम पे तारी हैं ज़ुल्मात किस क़दर شمس و مہہ

हर किसी अपने से नालाँ, सारे बेगानों से दूर

हर किसी अपने से नालाँ , सारे बेगानों से दूर मस्लेहत तन्हा खड़ी है सारे अरमानों से दूर ہر کسی اپنے سے نالاں، سارے بیگانوں سے دور مصلحت تنہا کھڑی ہے سارے ارمانوں سے دور मुफ़लिसी गिरिया सरा है सारे इमकानों से दूर सर पटकती है तमन्ना ऊँची दूकानों से दूर مفلسی گریہ سرا ہے سارے امکانوں سے دور سر پٹکتی ہے تمنا اونچی دوکانوں سے دور बात कोई हो , फ़साने कितने बुन लेते हैं लोग चाहे जितनी हो हक़ीक़त ऐसे अफ़सानों से दूर بات کوئی ہو، فسانے کتنے بُن لیتے ہیں لوگ چاہے جتنی ہو حقیقت ایسے افسانوں سے دور मर नहीं सकती हक़ीक़त बातिलों के वार से आतिश-ए-नमरूद तो है हक़ के दामानों से दूर مر نہیں سکتی حقیقت باطلوں کے وار سے آتشِ نمرود تو ہے حق کے دامانوں سے دور सर झुकाएँ , पाँव चूमें ? यूँ कोई ऐज़ाज़ लें ? हम किसी कम ज़र्फ़ के रहते हैं अहसानों से दूर سر جھکائیں؟ پاؤں چومیں؟ یوں کوئی عیزاز لیں؟ ہم کسی کمظرف کے رہتے ہیں احسانوں سے دور क्या पता मारें वो मक्खी और गला ही काट दें ख़ैर चाहो तो हमेशा रहना नादानों से दूर کیا پتہ ماریں وہ مکھی اور گلا ہی کاٹ دیں خیر چاہو ت

चंद मुर्दा ख़्वाहिशों पर आज तक टाला मुझे

चंद मुर्दा ख़्वाहिशों पर आज तक टाला मुझे क्यूँ बनाया मुझ को आख़िर , क्यूँ मिटा डाला मुझे چند مردہ خواہشوں پر آج تک ٹالا مجھے کیوں بنایا مجھ کو آخر، کیوں مٹا ڈالا مجھے मरहबा तख़लीक़ तेरी , आफ़रीं रब्बानियत रंज से मुझ को बनाया , अश्क पर पाला मुझे مرہبہ تخلیق تیری، آفریں ربانیت رنج سے مجھ کو بنایا، اشک سے پالا مجھے धंसती जाती है ज़मीं , और रहना है क़ायम मक़ाम आज़माइश के ये कैसे ग़ार में डाला मुझे دھنستی جاتی ہے زمیں اور رہنا ہے قائم مقام آزمائش کے یہ کیسے غار میں ڈالا مجھے गुम कहाँ सब हो गईं रंगीनियाँ इस ज़ात की क्यूँ हर इक मंज़र नज़र आए सदा काला मुझे گُم کہاں سب ہو گئیں رنگینیاں اس ذات کی کیوں ہر اک منظر نظر آئے سدا کالا مجھے ज़हर कुछ ऐसा घुला बहते लहू की धार में ख़ुद भी ज़ख़्मी हो गया है मारने वाला मुझे زہر کچھ ایسا گھُلا بہتے لہو کی دھار میں خود بھی زخمی ہو گیا ہے مارنے والا مجھے तल्खियों पर डाल कर शीरीं कलामी की रिदा कह के अमृत दे गया है ज़हर का प्याला मुझे تلخیوں پر ڈال کر شیریں کلامی کی ردا کہہ کے امرت دے گیا ہے زہر کا پیالہ مجھے कोई तो ह

ख़मोशी का जहाँ है क़ुव्वत-ए-गोयाई से आगे

ख़मोशी का जहाँ है क़ुव्वत-ए-गोयाई से आगे ख़यालों की वो दुनिया है मेरी तन्हाई से आगे बलंदी दम बख़ुद है देख कर परवाज़ ख़्वाबों की तसव्वर ले चला मुझ को हद-ए-बीनाई से आगे चलो यूँ ही सही , मशहूर हो जाए हमारी ज़िद कोई इनआम भी होगा इसी रुसवाई से आगे अगर है हौसला तो फिर उतर कर देख लेते हैं न जाने क्या छुपा हो इस अतल गहराई से आगे ये अक़्ल ओ फ़हम की दुनिया बहुत महदूद है यारो जुनूँ की दास्ताँ तो है हद-ए -दानाई से आगे यहाँ अब ख़त्म होता है सफ़र तन्हा उड़ानों का मेरी परवाज़ पहुंची है हर इक ऊँचाई से आगे चलेंगी साथ कब तक रौनकें इस बज़्म की आख़िर है तन्हाई छुपी इस अंजुमन आराई से आगे मुझे महसूस हो जब भी कि मेरी हद यहाँ तक है मुझे "मुमताज़" ले जाए मेरी गहराई से आगे khamoshi ka jahaN hai quwwat e goyaai se aage khayaaloN ki wo duniya hai meri tanhaai se aage balandi dam ba khud hai dekh kar parwaaz khwaaboN ki tasawwar le chala mujh ko had e beenaai se aage chalo yuN hi sahi, mashhoor ho jaae hamaari zid koi in'aam bhi hoga isi ruswaai se aag

टकराई जब टरक से मेरी कार साफ़ साफ़

टकराई जब टरक से मेरी कार साफ़ साफ़ वो ब्रांड न्यू से बन गई भंगार (कबाड़ ) साफ़ साफ़ मेहमाँ की बेहयाई से कुढ़ता है मेज़बाँ सुन लो हर इक निवाले प् चटखार साफ़ साफ़ अब के हुआ है यूँ मुझे खांसी का आरिज़ा बजने लगा है सांस का हर तार साफ़ साफ़ ख़ारिज हुई ख़िज़ाब की डेट एक्सपायरी चमका सफ़ेद जुल्फों का हर तार साफ़ साफ़ जब से चुनावी वादों का बैठा है सब ग़ुबार आने लगा है तब से नज़र यार साफ़ साफ़ मोदी नितीश की भी तो परतें उधड़ गईं भ्रष्टों का अब नुमायाँ है आचार साफ़ साफ़ मोदी की आन बान से नालाँ हैं जो शरद दिखने लगी है दोनों की यलग़ार साफ़ साफ़ पी . एम . भी अपने मुल्क का अब तो है एम . एम . एस . कोयले की कोठरी में है सरदार साफ़ साफ़ मिसरा दिया था अब्बा ने बेढब , मगर जनाब इज़्ज़त हमारी बच गई इस बार साफ़ साफ़ यारों ने यूँ तो हम प् बड़ी फब्तियां कसीं " मुमताज़" हम बचा गए हर वार साफ़ साफ़ takra i jab truck se meri car saaf saaf wo brand new se ban gai bhangaar saaf saaf mehmaaN ki behayaai se kudhta hai mezbaaN sun lo har ik niwaale pa chatkhaar saaf saa

दिल ने दुनिया से जंग ठानी है

दिल ने दुनिया से जंग ठानी है अपनी तक़दीर आज़मानी है دل نع دنیا سے جنگ ٹھانی ہے اپنی تقدیر آزمانی ہے अब भी इतनी ही बस कहानी है एक राजा है एक रानी है اب بھی اتنی ہی بس کہانی ہے ایک راجہ ہے، ایک رانی ہے है यही दिल की दास्ताँ अब तक इक मोहब्बत है इक जवानी है ہے یہی دل کی داستاں اب تک اک محبت ہے اک جوانی ہے आँधियों से कहो ज़रा दम लें शम्मा इक राह में जलानी है آندھیوں سے کہو ذرا دم لیں شمع اک راہ میں جلانی ہے ज़िन्दगी ही कभी तलातुम थी अब तलातुम में ज़िन्दगानी है زندگی ہی کبھی طلاطم تھی اب طلاطم میں زندگانی हों मुक़ाबिल हज़ारहा तूफ़ाँ कब किसी की जुनूँ ने मानी है ہوں مقابل ہزارہا طوفاں کب کسی کی جنوں نے مانی ہے आस्माँ वुसअतें संभाल अपनी आज उड़ने की हम ने ठानी है آسماں وسعتیں سنبھال اپنی آج اڑنے کی ہم نے ٹھانی ہے क्या कहें इस में कितने तूफ़ाँ हैं आँख में बूँद भर जो पानी है کیا کہیں اس میں کتنے طوفاں ہیں آنکھ میں بوند بھر جو پانی پے जुस्तजू में ज़रा सी राहत की ख़ाक दर दर की हम ने छानी है جستتو میں ذرا سی راحت کی خاک در در کی ہم نے

वो हमसफ़र, मेरे हमराह जो चला भी नहीं

वो हमसफ़र , मेरे हमराह जो चला भी नहीं रहा भी साथ हमेशा , कभी मिला भी नहीं तमाम उम्र गुजरने को तो गुज़र भी गई प् बेक़रार सा वो पल कभी टला भी नहीं हुआ है दिल प् जो तारी ये बेहिसी का ख़ुमार सुकून ए दिल भी नहीं है , कोई ख़ला भी नहीं सद आफ़रीन ये ईज़ा परस्तियाँ दिल की कि ज़िन्दगी से मुझे अब कोई गिला भी नहीं चलें जो हम तो ज़माना भी साथ साथ चले हमारे साथ मगर कोई क़ाफ़िला भी नहीं हमारे दर्द से उस को बला की रग़बत थी तो ज़ख्म दिल का कभी हम ने फिर सिला भी नहीं रहा है यूँ तो हर इक ज़ाविया अयाँ , लेकिन ये राज़ ज़ात का हम पर कभी खुला भी नहीं ये और बात कि जीना भी फ़र्ज़ है , लेकिन हयात करने का "मुमताज़" हौसला भी नहीं wo hamsafar, mere hamraah jo chalaa bhi nahiN raha bhi saath hamesha, kabhi milaa bhi nahiN tamaam umr guzarne ko to guzar hi gai pa beqaraar sa wo pal kabhi talaa bhi nahiN hua hai dil pa jo taari ye behisi ka khumaar sukoon e dil bhi nahiN hai, koi khalaa bhi nahiN sad aafreen ye eezaa parastiyaaN dil ki ke zindagi se mujhe