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एक दुआइआ

नज़र भी , रूह भी , दिल भी , है दामन भी तही दाता पुकारे तेरी रहमत को मेरी तशनालबी दाता तेरे हाथों में ऐ शाह ए सख़ा कौनैन रक्खे हैं बहुत छोटी , बहुत अदना सी है मेरी ख़ुशी दाता अक़ीदा है मेरा हट कर , तलब मेरी ज़ियादा है मेरा कशकोल है छोटा , तेरी रहमत कुशादा है दिया तू ने मुझे जो भी , तेरी रहमत से तो कम है मोहब्बत में मेरा हद से गुजरने का इरादा है मेरी तक़दीर में कौन ओ मकाँ रखना , इरम रखना मेरे दाता ज़रा अपनी सख़ावत का भरम रखना कहीं उम्मीद का शीशा न चकनाचूर हो जाए मेरे हालात पर दाता ज़रा नज़र ए करम रखना नज़र तेरी सख़ावत पर , तेरी देहलीज़ पर सर है मैं इक तूफ़ान हूँ ग़म का , तू रहमत का समंदर है मेरी इस प्यास को एहसास का दरिया अता कर दे मेरे दामन में दुनिया की सभी रानाइयाँ भर दे nazar bhi, rooh bhi, dil bhi, hai daaman bhi tahee daata pukaare teri rehmat ko meri tashna labi daata tere haathoN meN aye shaah e sakhaa kaunain rakkhe haiN bahot chhoti, bahot adnaa si hai meri khushi daata aqeeda hai mera hat kar, talab meri ziyaada hai mera kashkol hai chho

दब के इतने पैकरों में, सांस लेना है अज़ाब

दब के इतने पैकरों में , सांस लेना है अज़ाब ज़िन्दगी मुझ से मिली है ओढ़ कर कितने नक़ाब ये मेरी हस्ती भी क्या है , दूर तक फैला सराब जल रहा है ज़र्रा ज़र्रा , तैश में है आफ़ताब मिट के भी हम कर न पाए उल्फ़तों का एहतेसाब क्या मिला बदला वफ़ा का , इक ख़ला , इक इज़तेराब पढ़ रहे हैं हम अबस , कुछ भी समझ आता नहीं खुल रहे हैं पै ब पै रिश्तों के हम पर कितने बाब क्या करें , बीनाई के ये ज़ख्म भरते ही नहीं चुभता है आँखों में , जब जब टूटता है कोई ख़्वाब ख़्वाब के मंज़र भी अक्सर सच ही लगते हैं , मगर खुल गया सारा भरम , अब हर ख़ुशी है आब आब ज़िन्दगी लेती रही है इम्तेहाँ पर इम्तेहाँ सब्र ओ इस्तेह्काम है हर आज़माइश का जवाब खा के नौ सौ साठ   चूहे , बिल्ली अब हज को चली आसी ए आज़म बने हैं आज कल इज़्ज़त मआब कितने हैं किरदार , माँ , बेटी , बहन , बीवी , ग़ुलाम हाँ मगर , " मुमताज़" की हस्ती , न कोई आब ओ ताब   dab ke itne paikroN meN, saans lena hai azaab zindagi mujh se mili hai odh kar kitne naqaab ye meri hasti bhi kya hai, door tak phaila saraab jal raha hai za

रोज़ एहसास ये अंगारों में ढलता क्यूँ है

रोज़ एहसास ये अंगारों में ढलता क्यूँ है ये अँधेरा शब ए तन्हाई का जलता क्यूँ है अश्क शबनम के यही करते हैं हर रोज़ सवाल गोद में शब की अँधेरा ये पिघलता क्यूँ है कोख में क़त्ल किये जाने की क्यूँ दी है सज़ा बाग़बाँ अपनी ही कलियों को कुचलता क्यूँ है मस्लेहत क़ैद रखेगी मुझे आख़िर कब तक ये जुनूँ रूप बदल कर मुझे छलता क्यूँ है ग़म के तेज़ाब से एहसास की सींची हैं जड़ें फिर तमन्ना का शजर आज भी फलता क्यूँ है क़ैद कर लेती है क्यूँ नूर को तारीकी - ए - शब बूढ़े सूरज को उफ़क़ रोज़ निगलता क्यूँ है ज़ेर - ओ - बम गर्दिश - ए - हालात के क्या हैं आख़िर आसमाँ रोज़ नए रंग बदलता क्यूँ है क़तरे सीमाब के "मुमताज़" न हाथ आएँगे दिल अबस नारसा हसरत प् मचलता क्यूँ है शजर – पेड़ , तारीकी-ए-शब – रात का अँधेरा , उफ़क़ – क्षितिज , ज़ेर - ओ - बम – ऊँच नीच , सीमाब – पारा , अबस – बेकार , नारसा – जिस की पहुँच न हो roz ehsaas ye angaaroN meN dhalta kyuN hai ye andhera shab e tanhaai ka jalta kyuN hai ashk shabnam ke yahi karte haiN har roz sawaal god meN shab ki andhera ye

एक ग़ज़ल केजरीवाल की नज़्र

थोडा ज़ाहिर किया हक़ , थोडा छुपाया तुम ने इक बंदरिया की तरह सच को नचाया तुम ने मुल्क को यूँ भी लगा है ये सियासत का जुज़ाम हो गया जिस्म लहू ऐसे खुजाया तुम ने खुल के अफ़सोस करो , ग़ैर प् इलज़ाम धरो जल रहा था जो चमन , क्यूँ न बुझाया तुम ने वो भी बतलाओ ज़रा जनता को ऐ सच के अमीन पद प् रहते हुए जो कुछ भी है खाया तुम ने इन की दुम थाम , किया पार सियासत का सिरात और अब कर दिया अन्ना को पराया तुम ने रह गईं अपना सा मुंह ले के किरन बेदी भी अपने रस्ते से उन्हें ख़ूब हटाया तुम ने वोट भी चंद मिलें तुम को तो कुछ बात भी है शोर तो खूब बहरहाल मचाया तुम ने     जुज़ाम - कोढ़,    सिरात - वैतरिणी 

फ़र्श था मख़मल का, लेकिन तीलियाँ फ़ौलाद की

फ़र्श था मख़मल का , लेकिन तीलियाँ फ़ौलाद की हो न पाएँ हम रिहा , कोशिश रही सय्याद की मरहबा ज़िन्दादिली , सद आफ़रीं फ़न्न-ए-हयात हम जहाँ पहुँचे , नई दुनिया वहाँ आबाद की दाम में आया जुनूँ , अब हसरतों की ख़ैर हो दिल ने फिर तस्कीन की सूरत कोई ईजाद की ऐ ख़ुदाई के तलबगारो , रहे ये भी ख़याल हो गई मिस्मार पल भर में इरम शद्दाद की इश्क़ की पुख़्ता इमारत किस क़दर कमज़ोर थी ज़लज़ला आया कि ईंटें हिल गईं बुनियाद की जब अना क़त्ल-ए-तरब की ज़िद पे आमादा हुई हसरतों ने बख़्त के दरबार में फ़रियाद की कर लिया फ़ाक़ा , प फैलाया नहीं दस्त ए सवाल हर तरह हम ने भी रक्खी है वज़अ अजदाद की लूट लेती हैं नशिस्तें यूँ भी कुछ मुतशाइरात " दाद लोगों की , गला अपना , ग़ज़ल उस्ताद की" हम जूनून ए ख़ाम ले कर दर ब दर फिरते रहे किस तरह "मुमताज़" हम ने ज़िन्दगी बर्बाद की फ़ौलाद – स्टील , सय्याद – बहेलिया , मरहबा –सद आफ़रीं - तारीफ़ी जुमला , फ़न्न - ए - हयात – जीवन जीने की कला , दाम – जाल , जुनूँ – सनक , तस्कीन – राहत , ईजाद – खोज , मिस्मार – ढह जाना , इरम – शद्दाद की जन्नत

इक यही आख़िरी हक़ीक़त है

इक यही आख़िरी हक़ीक़त है तेरी उल्फ़त मेरी इबादत है जान-ए-जाँ ये भी इक हक़ीक़त है मुझ को तेरी बहुत ज़रुरत है लूट का फ़न तवील क़ामत है आजकल आदमी की क़िल्लत है फ़ौत होने लगी है तारीकी एक उम्मीद की विलादत है मुझ को रखता है इक तज़बज़ुब में ये मेरे क़ल्ब की शरारत है छोटी छोटी हज़ार ख़ुशियाँ हैं इश्क़ में भी बड़ी नफ़ासत है खो गया जब क़रार तो जाना बेक़रारी में कितनी लज़्ज़त है जीतना , मुस्कराना , ख़ुश रहना ऐश में भी बड़ी मशक़्क़त है अब हवस का ही खेल है सारा " अब मोहब्बत कहाँ मोहब्बत है" ज़िन्दगी जिस को हम समझते हैं सिर्फ़ "मुमताज़" एक साअत है    ik yahi aakhiri haqeeqat hai teri ulfat meri ibaadat hai jaan e jaaN ye bhi ik haqeeqat hai mujh ko teri bahot zaroorat hai loot ka fan taweel qaamat hai aaj kal aadmi ki qillat hai faut hone lagi hai taariki ek ummeed ki wilaadat hai mujh ko rakhta hai ik tazabzub meN ye mere qalb ki sharaarat hai chhoti chhoti hazaar khushiyaaN haiN ishq meN bhi badi nafaasat hai