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ज़िन्दगी बाक़ी है जब तक, ये सफ़र बाक़ी है

ज़िन्दगी बाक़ी है जब तक , ये सफ़र बाक़ी है दूर तक फैली हुई राहगुज़र बाक़ी है सहमी आँखों में फ़सादात का डर बाक़ी है ये भी क्या कम है ? अभी शानों प सर बाक़ी है जब कि अब दिल में फ़क़त फ़ितना ओ शर बाक़ी है कौन कहता है , दुआओं में असर बाक़ी है दिल में जो जुह्द का जज़्बा है , न कट पाएगा आज़मा लो , कि जो शमशीर ओ तबर बाक़ी है हमसफ़र सारे जुदा हो गए रफ़्ता रफ़्ता इक दिल ए नातवाँ , इक दीदा ए तर बाक़ी है देख लो तुम , कि जो हक़ है , वो नहीं छुप सकता वो भी रख दो , कोई इलज़ाम अगर बाक़ी है मुद्दतें हो गईं जन्नत से निकल कर , लेकिन नस्ल ए इंसान के दिल में अभी शर बाक़ी है धार ख़ंजर में है जिस के , वो मुक़ाबिल आए एक "मुमताज़" अभी सीना सिपर बाक़ी है   zindagi baaqi hai jab tak, ye safar baaqi hai door tak phaili hui raahguzar baaqi hai sahmi aankhoN meN fasaadaat ka dar baaqi hai ye bhi kya kam hai? abhi shaanoN pa sar baaqi hai jab ke ab dil meN faqat fitna o shar baaqi hai kaun kehta hai, duaaoN meN asar baaqi hai dil meN jo juhd ka jazbaa hai, na kat pa

कर्ब ए नारसाई

मोहब्बत   ब ढ़ ती   जाती   है अज़ीअत   ब ढ़ ती   जाती   है अभी   तक   तो मेरी   आँखों   में तेरा   अक्स   उतरा   था अभी   तक मेरी   महसूसात   का ये   दिल   ही क़ैदी   था लहू   रौशन   था रग   रग   का अभी   तक लम्स   की   ज़ौ   से अभी   जज़्बा तेरी   बेसाख्ता   जुरअत   का आदी   था मगर   अब रफ़्ता   रफ़्ता रूह क़ैदी   होती   जाती   है मेरी   हस्ती जहान   ए   यास   में अब   खोती   जाती   है मेरे   जज़्बात   की   दुनिया   में ये   सैलाब   है   कैसा मेरी   बेताब   आँखों   में न   जाने   ख़्वाब   है   कैसा नशीले   ख़्वाब   में पिन्हाँ अजब   सी   बेक़रारी   है मेरे   जज़्बात आँखों   से टपक   जाने   के   ख़्वाहाँ   हैं इसी   सैलाब   में दिल   डूबा   जाता   है न   जाने   क्यूँ तसव्वर   रेज़ा   रेज़ा हसरतें   भी हैराँ   हैराँ   हैं न   जाने   कौन   सी   मंज़िल   की   जानिब गामज़न   हूँ   मैं अज़ीअत- तकलीफ , महसूसात – feelings, लम्स – स्पर्श , ज़ौ – किरण , जहान  ए  यास – उदासी की दुनिया , पिन्हाँ – छुपी हुई , ख़्वाहाँ –

अब अपनी जीत को ऐसे भी दाग़दार न कर

अब अपनी जीत को ऐसे भी दाग़दार न कर शिकस्त 1 खाए हुए दुश्मनों पे वार न कर जेहाद-ए-इश्क़ 2 को रुस्वा सर-ए-दयार 3 न कर जिगर के दाग़ ज़माने पे आशकार 4 न कर है फूल फूल तेरी बेक़रारियों पे निसार जूनून-ए-दश्त-नवर्दी 5 , तवाफ़-ए-ख़ार 6 न कर जहान-ए-ज़ुल्म 7 तेरा ख़ाक हो न जाए कहीं उबलते ख़ून के क़तरों 8 का कारोबार न कर वक़ार-ए-शौक़-ए-अना 9 का भी पास रख थोड़ा जूनून 10 में भी गरेबाँ को तार तार न कर रगों के ख़ून से जज़्बों की आबयारी 11 कर तू सरफ़रोशी 12 की ज़िद में तवाफ़-ए-दार 13 न कर फ़रेब देता रहा है क़दम क़दम प् ये दिल तू दिल की बात का "मुमताज़" ऐतबार न कर 1- हार , 2- प्रेम का संघर्ष , 3- शहर के बीच , 4- ज़ाहिर , 5- जंगलों में भटकने का जुनून , 6- काँटों की परिक्रमा , 7- अत्याचार की दुनिया , 8- बूँदों , 9- अहम के शौक़ की गंभीरता , 10- पागलपन , 11- सिंचाई , 12- मर मिटना , 13- फांसी के तख्ते की परिक्रमा ab apni jeet ko aise bhi daaghdaar na kar shikast khaae hue dushmanoN pa waar na kar jehaad e ishq ko ruswa sar e dayaar na kar jig

हर ख़ुशी आधी अधूरी, ख़्वाब हर झूठा दिया

हर   ख़ुशी   आधी   अधूरी ,   ख़्वाब   हर   झूठा   दिया सोचती   हूँ ,   मुझ   को   मेरी   ज़िन्दगी   ने   क्या   दिया ख़्वाब   दिखला   कर   सराबों   तक   मुझे   फिर   ले   गई ज़िन्दगी   ने   वरगला    कर   मुझ   को   फिर   धोका   दिया थी   जुनूँ   की   इन्तेहा ,   तो   फिर   ये   सब   होना   ही   था शौक़   से   जो   था   बनाया ,   आज   वो   घर   ढा   दिया रौशनी   है   तेज़   इतनी ,   कुछ   नज़र   आता   नहीं ये   कहाँ   मुझ   को   जूनून-ए-शौक़   ने   पहुंचा   दिया दिल   के   इक   इक   ज़ख्म   को   खुरचा   है   उस   के   सामने ख़ूब   मैं   ने   भी   जफ़ाओं   का   उसे   बदला   दिया बोलती   आँखों   में   जाने   राज़   क्या   क्या   थे   निहां इक   नज़र   ने   गोशा   गोशा   रूह   का   महका   दिया क़ैद-ए-दिल   से   हो   न   पाए   एक   भी   हसरत   फ़रार दिल   के   दरवाज़े   पे   मैं   ने   उम्र   भर   पहरा   दिया उस   सुनहरे   पल   में   जाने   कितनी   सदियाँ   क़ैद   थीं मेरी   क़िस्मत   ने   मुझे   जो   दिलरुबा   लहज़ा 1   दिया मैं   जहान-ए-ख़्वाब   की   रानाइयों

अजनबी एहसास

है रात गुलाबी , सर्द हवा बेदार 1 हुआ है एक फुसूँ 2 बेचैन पलों के नरग़े 3 में मैं तनहा तनहा बैठी हूँ है ज़हन परेशाँ , बेकल दिल क्या जाने ये कैसी उलझन है खोई हूँ न जाने किस धुन में बस , जागते में भी सोई हूँ वीरान फ़ज़ा-ए-ज़हन में फिर आहट ये किसी की आती है रह रह के मुझे चौंकाती है रह रह के मुझे तडपाती है रह रह के तरब 4 के कानों में आती है न जाने किस की सदा अब आग लगी अब सर्द हुई वो आस जली वो दर्द बुझा कुछ यादें हैं   कुछ साए हैं कुछ बोलती सी तस्वीरें हैं कुछ अनजाने से बंधन हैं   कुछ अनदेखी ज़ंजीरें हैं   तन्हाई के नाज़ुक रेशम से तख़ ' ईल 5 शरारे 6 बुनती है कुछ गर्म तसव्वर लिखती है कुछ नर्म इशारे बुनती है होंटों प कभी खिंच जाती है इक नर्म तबस्सुम 7 की रेखा उंगली से ज़मीं पर खींचूँ कभी अनबोले तकल्लुम 8 की रेखा आँखों में कभी जुगनू चमकें पलकों प कभी शबनम महके जब याद की कलियाँ खिल जाएं   इक कर्ब 9 जले इक ग़म महके वो दूर उफ़क़ 10 की वादी में   सूरज ने बिखेरी है अफ़्शां 11 इस छेड़ से क्यूँ शरमाई शफ़क़ 12 सिन्द