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ओ हसीना

ओ हसीना देख के क़ातिल तेरी अदाएँ मुश्किल हुआ है जीना जाने चमन , शो ’ ला बदन लहराए तेरा गोरा बदन धड़कन ये दिल की सदा तुझ को देगी दीवाना मुझ को बना कर रहेगी तेरी नज़र की मीना ओ हसीना............. शोख़ी भरी तेरी अदा अंदाज़ तेरा सब से जुदा खोई खोई निगाहें शराबी भीगे हुए तेरे लब ये गुलाबी दिल मेरा तू ने छीना ओ हसीना........... दीवानगी की जुस्तजू सीने में तेरी है आरज़ू दीवानगी मेरी क्या मुझ को देगी आरज़ू मेरी दग़ा मुझ को देगी ये आग दिल की बुझी ना ओ हसीना.................

ऐ शोख़ नज़र

ऐ शोख़ नज़र , ऐ शोख़ अदा आँखों से मुझे पीने दे ज़रा इक राज़ छुपाया था दिल ने आँखों ने कहा , आँखों ने सुना तेरी चाँद जो देखे एक झलक तेरे हुस्न में वो भी खो जाए तू ज़ुल्फ़ अगर बिखरा दे ज़रा तो रात दीवानी हो जाए जब से तू चमन में आया है हर एक कली मुसकाई है तेरी शोख़ नज़र की गर्मी से चंदा की किरन शरमाई है तुझे ढूंढ रही है ठंडी हवा गुल पूछ रहे हैं तेरा पता ऐ शोख़ नज़र.............. बे ख़्वाब सी मेरी आँखों में ख़्वाबों की सुनहरी धूप खिली बल खा के तमन्ना जाग उठी साँसों में तेरी महकार घुली जीवन की अकेली राहों में सौ रंग बिखरते जाते हैं रंगीन हुआ है दिन का समां ख़ुशबू से महकती रातें हैं क़ुर्बान तेरे तक़दीर मेरी सदक़े मैं तेरे ऐ होशरुबा ऐ शोख़ नज़र.............

ये कैसा दर्द है

ये कैसा दर्द है कैसी कसक है ये क्यूँ हर   पल   तेरी   यादें मुझे बेचैन रखती हैं तेरी आँखें मेरे दिल पर वफ़ा का नाम लिखती हैं ये उल्फ़त की तपक है मेरे राहतकदे   में क्यूँ ये उलझन बढती जाती है ये कैसा राब्ता है तेरे एहसास का इस दर्द से   क्यूँ चुभ रही हैं तेरी साँसें मेरे चेहरे पर ख़यालों की धनक है मेरी हस्ती कहाँ गुम होती जाती है अना ख़ामोश क्यूँ है ये जुनूँ को क्या हुआ ज़िद क्यूँ हेरासाँ है ये धड़कन क्यूँ परेशाँ है ये किस शय की खनक है राब्ता-सम्बन्ध , धनक-इंद्र्धनुष , अना-अहम् , जुनूँ-दीवानगी , हेरासाँ-डरी हुई یہ کیسا درد ہے کیسی کسک ہے یہ کیوں ہر پل تری یادیں مجھے بے چین رکھتی ہیں تری آنکھیں مرے دل پر وفا کا نام لکھتی ہیں یہ الفت کی تپک ہے مرے راحت کدے میں کیوں یہ الجھن بڑھتی جاتی ہے یہ کیسا رابطہ ہے ترے احساس کا اس درد سے کیوں چبھ رہی ہیں تیری سانسیں میرے چہرے پر خیالوں کی دھنک ہے مری ہستی کہاں گم ہوتی جاتی ہے انا خاموش کیوں ہے یہ جنوں کو کیا ہوا ضد کیوں ہراساں ہے یہ دھڑکن کیوں پریشاں ہے یہ کس شے ک

न जाने कौन है वो

न जाने कौन है वो अजनबी क्या नाम है उस का न जाने कब से इक एहसास बन कर आ गया है वो ख़यालों पर , तसव्वर पर ज़हन पर छा गया है वो न जाने कौन है वो अजनबी , क्या नाम है उस का घुली रहती है मेरी गरम साँसों में महक उस की मेरे चेहरे पे झुक जाती है साये सी पलक उस की बसा रहता है साँसों में वही मेहताब सा चेहरा कभी सरगोशियों में धड़कनों की लय सुनाता है कभी चुपके से इक उल्फ़त का नग़्मा गुनगुनाता है कभी उस के लबों का लम्स छू लेता है गालों को चुना करती हैं आँखें उस की नज़रों के उजालों को समंदर बनता जाता है मेरी तक़दीर का सेहरा मेरे जज़्बों की धड़कन है मेरी उल्फ़त का दिल है वो तसव्वर है , तख़य्युल है , कि ख़्वाब-ए-मुस्तक़िल है वो न जाने कौन है किस की इबादत करती रहती हूँ किसी एहसास के पैकर से उल्फ़त करती रहती हूँ मेरी तनहाई में रक़्साँ रहे वो अक्स , वो साया

क़ज़ा*1 की क्या कहें, ठहरी न ज़िन्दगी मुख़लिस*2

क़ज़ा *1 की क्या कहें , ठहरी न ज़िन्दगी मुख़लिस *2 अज़ीज़ *3 ग़म ही हुए हैं न है ख़ुशी मुख़लिस      قضا کی کیا کہیں، ٹھہری نہ زندگی مخلص عزیز غم ہی ہوئے ہیں نہ ہے خوشی مخلص किताब चेहरा *4 ज़माने में रब्त *5 मस्नूई *6 यहाँ हज़ारों मिले हम को काग़ज़ी मुख़लिस        کتاب چہرہ زمانے میں ربط مصنوعی یہاں ہزاروں ملے ہم کو کاغزی مخلص लहू के प्यासे दरिंदों से रहम की उम्मीद ? कभी हुई है किसी की दरिंदगी मुख़लिस ? لہو کے پیاسے درندوں سے رحم کی امید؟ کبھی ھوئی ہے کسی کی درندگی مخلص؟ जदीद *7 दौर में इंसाफ़ बेचा जाता है ग़रीब लोगों की होगी न आदिली *8 मुख़लिस        جدید دور میں انساف بیچا جاتا ہے غریب لوگوں کی ہوگی نہ عادلی مخلص ज़मीर बेच दिया है हर एक ने अपना रहे इमाम * 9 ही मुखलिस , न मुक़्तदी *10 मुख़लिस       ضمیر بیچ دیا ہے ہر ایک نے اپنا رہے امام ہی مخلص، نہ مقتدی مخلص अज़ीयतें *11 भी वफ़ा में अज़ीज़ होती हैं है ख़ार *12 ख़ार से लिपटी कली कली मुख़लिस          عذیئتیں بھی وفا میں عزیز ہوتی ہیں ہے خار خار سے لپٹی کلی کلی مخلص ये दिल तो चीज़ ही क्या ह

तमन्ना बैठी रहेगी डरी डरी कब तक

तमन्ना बैठी रहेगी डरी डरी कब तक मुझे मिटाती रहेगी मेरी ख़ुदी कब तक चलेगी साथ कहाँ तक हमारी महरूमी रहेगी वक़्त की पेशानी पर कजी कब तक गुज़र चुका है यक़ीन-ओ-गुमाँ का वो तूफ़ाँ रहेगी ज़िन्दगी इस मोड़ पर रुकी कब तक रिहा करेगा कभी तो हमें हमारा दिल हमारे हाथों में माज़ी की हथकड़ी कब तक जुनून-ए-शौक़ , मुक़द्दर का नाज़ तोड़ भी दे उड़ाती जाएगी क़िस्मत मेरी हँसी कब तक बस अब बहुत हुई रग़बत की ये अदाकारी अबस शिकस्ता बुतों की ये बन्दगी कब तक गुजरने वालों को परवाह ही कब रही आख़िर किसी का रास्ता ताकती रही गली कब तक ज़रा सा जीना है “मुमताज़” इन पलों में हमें हमारे हाथ में जाने रहे ख़ुशी कब तक कजी – टेढ़ा पन , माज़ी – भूतकाल , रग़बत – मोहब्बत , अदाकारी – अभिनय , अबस – बेकार , शिकस्ता – टूटा हुआ , बुतों – मूर्तियों , बन्दगी – पूजा تمنا بیٹھی رہیگی ڈری ڈری کب تک مجھے مٹاتی رہیگی مری خوشی کب تک چلیگی ساتھ کہاں تک ہماری محرومی رہیگی وقت کی پیشانی پر کجی کب تک گزر چکا ہے یقین و گماں کا وہ طوفاں رہیگی زندگی اس موڑ پر رکی کب تک رہا کریگا کبھی تو ہمیں ہ

मेरे सपनों का भारत

ज़मीं सोने की हो और आस्माँ चाँदी के ख़्वाबों का ज़मीं के ज़र्रे ज़र्रे पर चमन महके गुलाबों का हर इक इंसाँ के ख़्वाबों को यहाँ ताबीर मिल जाए हमें हिन्दोस्ताँ की काश वो तस्वीर   मिल जाए जहाँ कोई न भूका हो , जहाँ कोई न प्यासा हो हर इक मज़दूर के हाथों में दौलत का असासा हो जहाँ हर फ़र्द के दिल में मोहब्बत ही मोहब्बत हो न दंगे हों , न बम फूटें , यहाँ राहत ही राहत हो कभी चाँदी के टुकड़ों के लिए बच्चे न बिकते हों यहाँ हम अपने हाथों से नई तक़दीर लिखते हों यहाँ बेटी को भी बेटों के जितना प्यार मिलता हो यहाँ हर इक को ज़िन्दा रहने का अधिकार मिलता हो कहीं छोटे बड़े का भेद हो कोई , न झगड़ा हो कोई बस्ती न जलती हो , कोई जीवन न उजड़ा हो यहाँ मज़हब के ठेकेदार भी मिल जुल के रहते हों कोई मस्जिद न गिरती हो , कहीं मंदिर न ढहते हों ये भारत अपने ख़्वाबों का हमें मिल कर बनाना है उठा कर आस्माँ से स्वर्ग इस धरती पे लाना है