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मेरे सपनों का भारत

ज़मीं सोने की हो और आस्माँ चाँदी के ख़्वाबों का ज़मीं के ज़र्रे ज़र्रे पर चमन महके गुलाबों का हर इक इंसाँ के ख़्वाबों को यहाँ ताबीर मिल जाए हमें हिन्दोस्ताँ की काश वो तस्वीर   मिल जाए जहाँ कोई न भूका हो , जहाँ कोई न प्यासा हो हर इक मज़दूर के हाथों में दौलत का असासा हो जहाँ हर फ़र्द के दिल में मोहब्बत ही मोहब्बत हो न दंगे हों , न बम फूटें , यहाँ राहत ही राहत हो कभी चाँदी के टुकड़ों के लिए बच्चे न बिकते हों यहाँ हम अपने हाथों से नई तक़दीर लिखते हों यहाँ बेटी को भी बेटों के जितना प्यार मिलता हो यहाँ हर इक को ज़िन्दा रहने का अधिकार मिलता हो कहीं छोटे बड़े का भेद हो कोई , न झगड़ा हो कोई बस्ती न जलती हो , कोई जीवन न उजड़ा हो यहाँ मज़हब के ठेकेदार भी मिल जुल के रहते हों कोई मस्जिद न गिरती हो , कहीं मंदिर न ढहते हों ये भारत अपने ख़्वाबों का हमें मिल कर बनाना है उठा कर आस्माँ से स्वर्ग इस धरती पे लाना है

इंसाँ बेदस्तार हुआ है

इंसाँ बेदस्तार हुआ   है ज़ख़्मी   हर   किरदार   हुआ   है तूफ़ानों   का   वार   हुआ   है फिर   भी   सफ़ीना   पार   हुआ   है नादारों   की   जान   है   सस्ती जीना   भी   ब्योपार   हुआ   है ख़्वाबों   का   ख़ुर्शीद   तो   डूबा दिल   आख़िर   बेदार   हुआ   है बीनाई   सरशार   हुई   है आज   उन   का   दीदार   हुआ   है लम्हा   लम्हा   भाग   रहा   है वक़्त   सुबुक   रफ़्तार   हुआ   है कुछ   तो   है   "मुमताज़ " ने   पाया हर   लम्हा   सरशार   हुआ   है insaaN bedastaar hua hai zakhmee har kirdaar hua hai toofaanoN ka waar hua hai phir bhi safeena paar hua hai naadaaroN ki jaan hai sasti jeena bhi byopaar hua hai khwaaboN ka khursheed to dooba dil aakhir bedaar hua hai beenaai sarshaar hui hai aaj un ka deedaar hua hai lamha lamha bhaag raha hai waqt subuk raftaar hua hai kuchh to hai "Mumtaz" ne paaya har lamhaa sarshaar hua hai

तेरे दर पे ख़ैरात क्या क्या बँटी है

तेरे दर पे ख़ैरात क्या क्या बँटी है मगर मेरा दामन अभी तक तही है किया है अता दर्द का इक ख़ज़ाना   सितमगर भी मेरा बला का सख़ी है अभी रश्क करती है तक़दीर मुझ पर अभी मेरी शाख़-ए-तमन्ना हरी है मेरे दिल से ले कर तेरी बरहमी तक वरक़ दर वरक़ इक कहानी लिखी है कभी कुफ़्ल मेरी ज़ुबाँ पर लगे हैं कभी पाँव में उस के बेड़ी पड़ी है तलब से सिवा उस को बख़्शा है रब ने मुक़द्दर की “ मुमताज़ ” कितनी धनी है ترے در پہ خیرات کیا کیا بٹی ہے مگر میرا دامن ابھی تک تہی ہے کیا ہے عطا درد کا اک خزانہ ستمگر بھی میرا بلا کا سخی ہے ابھی رشق کرتی ہے تقدیر مجھ پر ابھی میری شاخِ تمنا ہری ہے مرے دل سے لے کر تری برہمی تک ورق در ورق اک کہانی لکھی ہے کبھی کفل میری زباں پر لگے ہیں کبھی پاؤں میں اس کے بیڑی پڑی ہے طلب سے سوا اس کو بخشا ہے رب نے مقدر کی ممتازؔ کتنی دھنی ہے

तस्वीर-ए-ज़िन्दगी में धनक रंग भर गए

तस्वीर-ए-ज़िन्दगी में धनक रंग भर गए ख़ुशबू के क़ाफ़िले मेरे दिल से गुज़र गए सैलाब कितने आज यहाँ से गुज़र   गए आँखों में जो बसे थे , सभी ख़्वाब मर गए दर दर फिरी हयात सुकूँ के लिए   मगर वहशत हमारे साथ रही , हम जिधर गए सीने में कुछ तो टीसता रहता है रोज़ - ओ - शब मजबूरियों के यूँ तो सभी ज़ख़्म भर गए नाज़ुक से ख़्वाब जल के कहीं ख़ाक हो न जाएँ हम जलती आरज़ू की तमाज़त से डर गए पैकर वो रौशनी का जो उतरा निगाह में कितने हसीन ख़्वाब नज़र में सँवर गए सैलाब ऐसा आया वफ़ा के   जहान   में " दिल में उतरने वाले नज़र से उतर गए" जिन से ख़याल-ओ-ख़्वाब की दुनिया जवान थी " मुमताज़" वो हसीन नज़ारे किधर गए tasweer e zindagi meN dhanak rang bhar gae khushboo ke qaafile mere dil se guzar gae sailaab kitne aaj yahaN se guzar gae aankhoN meN jo base the, sabhi khwaab mar gae dar dar phiri hayaat sukooN ke liye magar wahshat hamaare saath rahi, ham jidhar gae seene meN kuchh to teesta rehta hai roz o shab majbooriyoN ke yuN to sabhi zakhm

रतजगों से ख्वाब तक (मेरी किताब का पेश लफ़्ज़)‎

रतजगे और ख़्वाब मेरी ज़िन्दगी के साथ साथ चलते रहे हैं। कभी रतजगे ख़्वाब ओढ़ कर मिले , तो कभी ख़्वाबों की रौशनी रतजगों में ढल गई। जागती आँखों से ख़्वाब देखने का सिलसिला मेरे बचपन में ही शुरू हो गया था। ज़िन्दगी की हक़ीक़त की तमाज़त से घबरा कर अक्सर मैं ख़्वाबों के साये में पनाह ढूँढ लेती। उस वक़्त इन ख़्वाबों को पैकर में ढालना नहीं आता था मुझे। लेकिन वक़्त के साथ साथ ख़्वाबों की तरतीब में भी मतानत आने लगी , और मेरे मिज़ाज में भी , और फिर ये ख़्वाब शेरों की शक्ल में ढल कर काग़ज़ पर बिखरने लगे। वक़्त का कारवाँ कभी रुकता नहीं है , और ज़िन्दगी का सफ़र हर हाल में जारी रहता है। मेरी ज़िन्दगी का सफ़र भी लम्हा दर लम्हा , माह दर माह , और फिर साल दर साल जारी रहा , और इस के साथ ही साथ हक़ीक़तों की तमाज़त शिद्दत इख़्तियार करती गई। वक़्त का कारवाँ जाने किन किन मोड़ों से गुज़र कर आगे बढ़ता गया , जाने कितने हमसफ़र मिले , जाने कितने बिछड़ते रहे , लेकिन मेरे ख़्वाबों के साये मेरे साथ साथ चलते रहे। शायद यही वजह थी कि मेरा वजूद हक़ीक़त की तमाज़त में झुलस कर खाक न होने पाया , लेकिन ख़्वाबों के सायों की ठंडक इस आंच में जल गई और म

बेज़ारी की बर्फ़ पिघलना मुश्किल है

बेज़ारी   की   बर्फ़   पिघलना   मुश्किल   है   ख़्वाबों   से   दिल   आज   बहलना   मुश्किल   है तुन्द हवाओं   से   लर्ज़ाँ   है   शम्म-ए-यक़ीं   इस   आंधी   में   दीप   ये   जलना   मुश्किल   है हर   जानिब   है   आग , सफ़र   दुशवार   है   अब जलती   है   ये   राह , कि चलना   मुश्किल   है आग   की   बारिश , ख़ौफ़ के   दरिया   का   सैलाब इस   मौसम   में   घर   से   निकलना   मुश्किल   है गर्म   है   क़त्ल   ओ   ग़ारत का   बाज़ार   अभी ये   जाँ   का   जंजाल   तो   टलना   मुश्किल   है उल्फ़त   की   अब   छाँव   तलाश   करो   यारो नफ़रत   का   ख़ुर्शीद   तो   ढलना   मुश्किल   है ताक़त   जिस   की   राज   उसी   का   चलता   है " जंगल   का   क़ानून   बदलना   मुश्किल   है" अंधी   खाई   है   आगे   ऐ   हम   वतनो        फिसले   तो   "मुमताज़" संभलना मुश्किल   है   bezaari ki barf pighalna mushkil hai khwaaboN se dil aaj bahlna mushkil hai tund hawaaoN se larzaaN hai sham e yaqeeN is aandhi meN deep ye jalna mushkil hai har jaani

नफ़रतों का ये नगर मिस्मार होना चाहिए

नफ़रतों का ये नगर मिस्मार होना चाहिए अब मोहब्बत का खुला इज़हार होना चाहिए एकता की कश्तियाँ मज़बूत कर लो साथियो अब त ' अस्सुब का ये दरिया पार होना चाहिए टूटे मुरझाए दिलों को प्यार से सींचो , कि अब रूह का रेग ए रवाँ गुलज़ार होना चाहिए मुल्क देता है सदा , ऐ मेरे हमवतनो , उठो सो लिए काफ़ी , बस अब बेदार होना चाहिए खौफ़ का सूरज ढले , सब के दिलों में हो यक़ीं है नहीं , लेकिन ये अब ऐ यार , होना चाहिए कब तलक "मुमताज़" बेजा हरकतों का इत्तेबाअ हर सदा पर हाँ ? कभी इनकार होना चाहिए nafratoN ka ye nagar mismaar hona chaaiye ab mohabbat ka khula izhaar hona chaahiye zulmaton ka ye safar hamwaar hona chaahiye "aadmi ko aadmi se pyar hona chaahiye" ekta ki kashtiyaaN mazboot kar lo dosto ab ta'assub ka ye dariya paar hona chaahiye toote murjhaae diloN ko pyaar se seencho, ki ab rooh ka reg e rawaaN gulzaar hona chaahiye mulk deta hai sadaa, ae mere hamwatno, utho so liye kaafi, bas ab bedaar hona chaahiye khauf