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तेरे दर पे ख़ैरात क्या क्या बँटी है

तेरे दर पे ख़ैरात क्या क्या बँटी है मगर मेरा दामन अभी तक तही है किया है अता दर्द का इक ख़ज़ाना   सितमगर भी मेरा बला का सख़ी है अभी रश्क करती है तक़दीर मुझ पर अभी मेरी शाख़-ए-तमन्ना हरी है मेरे दिल से ले कर तेरी बरहमी तक वरक़ दर वरक़ इक कहानी लिखी है कभी कुफ़्ल मेरी ज़ुबाँ पर लगे हैं कभी पाँव में उस के बेड़ी पड़ी है तलब से सिवा उस को बख़्शा है रब ने मुक़द्दर की “ मुमताज़ ” कितनी धनी है ترے در پہ خیرات کیا کیا بٹی ہے مگر میرا دامن ابھی تک تہی ہے کیا ہے عطا درد کا اک خزانہ ستمگر بھی میرا بلا کا سخی ہے ابھی رشق کرتی ہے تقدیر مجھ پر ابھی میری شاخِ تمنا ہری ہے مرے دل سے لے کر تری برہمی تک ورق در ورق اک کہانی لکھی ہے کبھی کفل میری زباں پر لگے ہیں کبھی پاؤں میں اس کے بیڑی پڑی ہے طلب سے سوا اس کو بخشا ہے رب نے مقدر کی ممتازؔ کتنی دھنی ہے

तस्वीर-ए-ज़िन्दगी में धनक रंग भर गए

तस्वीर-ए-ज़िन्दगी में धनक रंग भर गए ख़ुशबू के क़ाफ़िले मेरे दिल से गुज़र गए सैलाब कितने आज यहाँ से गुज़र   गए आँखों में जो बसे थे , सभी ख़्वाब मर गए दर दर फिरी हयात सुकूँ के लिए   मगर वहशत हमारे साथ रही , हम जिधर गए सीने में कुछ तो टीसता रहता है रोज़ - ओ - शब मजबूरियों के यूँ तो सभी ज़ख़्म भर गए नाज़ुक से ख़्वाब जल के कहीं ख़ाक हो न जाएँ हम जलती आरज़ू की तमाज़त से डर गए पैकर वो रौशनी का जो उतरा निगाह में कितने हसीन ख़्वाब नज़र में सँवर गए सैलाब ऐसा आया वफ़ा के   जहान   में " दिल में उतरने वाले नज़र से उतर गए" जिन से ख़याल-ओ-ख़्वाब की दुनिया जवान थी " मुमताज़" वो हसीन नज़ारे किधर गए tasweer e zindagi meN dhanak rang bhar gae khushboo ke qaafile mere dil se guzar gae sailaab kitne aaj yahaN se guzar gae aankhoN meN jo base the, sabhi khwaab mar gae dar dar phiri hayaat sukooN ke liye magar wahshat hamaare saath rahi, ham jidhar gae seene meN kuchh to teesta rehta hai roz o shab majbooriyoN ke yuN to sabhi zakhm

रतजगों से ख्वाब तक (मेरी किताब का पेश लफ़्ज़)‎

रतजगे और ख़्वाब मेरी ज़िन्दगी के साथ साथ चलते रहे हैं। कभी रतजगे ख़्वाब ओढ़ कर मिले , तो कभी ख़्वाबों की रौशनी रतजगों में ढल गई। जागती आँखों से ख़्वाब देखने का सिलसिला मेरे बचपन में ही शुरू हो गया था। ज़िन्दगी की हक़ीक़त की तमाज़त से घबरा कर अक्सर मैं ख़्वाबों के साये में पनाह ढूँढ लेती। उस वक़्त इन ख़्वाबों को पैकर में ढालना नहीं आता था मुझे। लेकिन वक़्त के साथ साथ ख़्वाबों की तरतीब में भी मतानत आने लगी , और मेरे मिज़ाज में भी , और फिर ये ख़्वाब शेरों की शक्ल में ढल कर काग़ज़ पर बिखरने लगे। वक़्त का कारवाँ कभी रुकता नहीं है , और ज़िन्दगी का सफ़र हर हाल में जारी रहता है। मेरी ज़िन्दगी का सफ़र भी लम्हा दर लम्हा , माह दर माह , और फिर साल दर साल जारी रहा , और इस के साथ ही साथ हक़ीक़तों की तमाज़त शिद्दत इख़्तियार करती गई। वक़्त का कारवाँ जाने किन किन मोड़ों से गुज़र कर आगे बढ़ता गया , जाने कितने हमसफ़र मिले , जाने कितने बिछड़ते रहे , लेकिन मेरे ख़्वाबों के साये मेरे साथ साथ चलते रहे। शायद यही वजह थी कि मेरा वजूद हक़ीक़त की तमाज़त में झुलस कर खाक न होने पाया , लेकिन ख़्वाबों के सायों की ठंडक इस आंच में जल गई और म

बेज़ारी की बर्फ़ पिघलना मुश्किल है

बेज़ारी   की   बर्फ़   पिघलना   मुश्किल   है   ख़्वाबों   से   दिल   आज   बहलना   मुश्किल   है तुन्द हवाओं   से   लर्ज़ाँ   है   शम्म-ए-यक़ीं   इस   आंधी   में   दीप   ये   जलना   मुश्किल   है हर   जानिब   है   आग , सफ़र   दुशवार   है   अब जलती   है   ये   राह , कि चलना   मुश्किल   है आग   की   बारिश , ख़ौफ़ के   दरिया   का   सैलाब इस   मौसम   में   घर   से   निकलना   मुश्किल   है गर्म   है   क़त्ल   ओ   ग़ारत का   बाज़ार   अभी ये   जाँ   का   जंजाल   तो   टलना   मुश्किल   है उल्फ़त   की   अब   छाँव   तलाश   करो   यारो नफ़रत   का   ख़ुर्शीद   तो   ढलना   मुश्किल   है ताक़त   जिस   की   राज   उसी   का   चलता   है " जंगल   का   क़ानून   बदलना   मुश्किल   है" अंधी   खाई   है   आगे   ऐ   हम   वतनो        फिसले   तो   "मुमताज़" संभलना मुश्किल   है   bezaari ki barf pighalna mushkil hai khwaaboN se dil aaj bahlna mushkil hai tund hawaaoN se larzaaN hai sham e yaqeeN is aandhi meN deep ye jalna mushkil hai har jaani

नफ़रतों का ये नगर मिस्मार होना चाहिए

नफ़रतों का ये नगर मिस्मार होना चाहिए अब मोहब्बत का खुला इज़हार होना चाहिए एकता की कश्तियाँ मज़बूत कर लो साथियो अब त ' अस्सुब का ये दरिया पार होना चाहिए टूटे मुरझाए दिलों को प्यार से सींचो , कि अब रूह का रेग ए रवाँ गुलज़ार होना चाहिए मुल्क देता है सदा , ऐ मेरे हमवतनो , उठो सो लिए काफ़ी , बस अब बेदार होना चाहिए खौफ़ का सूरज ढले , सब के दिलों में हो यक़ीं है नहीं , लेकिन ये अब ऐ यार , होना चाहिए कब तलक "मुमताज़" बेजा हरकतों का इत्तेबाअ हर सदा पर हाँ ? कभी इनकार होना चाहिए nafratoN ka ye nagar mismaar hona chaaiye ab mohabbat ka khula izhaar hona chaahiye zulmaton ka ye safar hamwaar hona chaahiye "aadmi ko aadmi se pyar hona chaahiye" ekta ki kashtiyaaN mazboot kar lo dosto ab ta'assub ka ye dariya paar hona chaahiye toote murjhaae diloN ko pyaar se seencho, ki ab rooh ka reg e rawaaN gulzaar hona chaahiye mulk deta hai sadaa, ae mere hamwatno, utho so liye kaafi, bas ab bedaar hona chaahiye khauf

ख़ंजर हैं तअस्सुब के, और खून की होली है

ख़ंजर हैं   तअस्सुब   के , और   खून की   होली   है हम   ने   ये   विरासत   अब   औलाद   को   सौंपी   है तारीक   बयाबाँ   में   ये   कैसी   तजल्ली   है ये   दिल   की   सियाही   में   क्या   शय   है   जो   जलती   है जो   हारे   वो   पा   जाए , ये   इश्क़   की   बाज़ी   है जब   ख़ुद   को   गंवाया   है , तब   जंग   ये   जीती   है है   दूर   अभी   साहिल , तय   हो   तो   सफ़र   कैसे रूठा   हुआ   मांझी   है , टूटी   हुई   कश्ती   है बेताब   जुनूँ   का   ये   अदना   सा   करिश्मा   है देहलीज़   पे   हसरत   की   तक़दीर   सवाली   है देखा   जो   ज़रा   मुड़   के , पथरा   गई   बीनाई माज़ी   से   मुझे   किसने   आवाज़   अभी   दी   है नाकाम   तमन्ना   ने   परवाज़   को   पर   खोले रौनक़   है   ख़यालों   में , अंदाज़   में   शोख़ी   है क्या   दे   के   मिलेगा   क्या , ये   शर्त   नहीं   चलती ब्यौपार   नहीं   साहब , ये   बात   तो   दिल   की   है इन्सां   की   ज़रुरत   का   सामान   हुआ   महंगा इंसान   हुआ   सस्ता , ये   दौर   ए   तरक़्क़ी   है सब   को   ह

दिल पे चलता ही नहीं अब कोई बस

दिल पे चलता ही नहीं अब कोई बस आरज़ू होती नहीं है   टस   से   मस दौर - ए - हाज़िर का ये सरमाया है बस खुदसरी , मतलब परस्ती और हवस ये गुज़र जाता है ठोकर मार कर कब किसी का वक़्त पर चलता है बस आशियाँ की आंच पहुंची है यहाँ तीलियाँ तपती हैं , जलता है क़फ़स डूब   जाए   नाउम्मीदी   का   जहाँ आज ऐ बारान - ए - रहमत यूँ बरस सूखता जाता है दिल का आबशार ज़िन्दगी में अब कहाँ बाक़ी वो रस मैं करूँ फ़रियाद ? नामुमकिन , तो क्यूँ " कोई खाए मेरी हालत पर तरस" है यक़ीं ख़ुद पर तो फिर "मुमताज़" जी क्यूँ भला दिल में है इतना पेश - ओ - पस dil pe chalta hi nahiN ab koi bas aarzoo hoti nahiN hai tas se mas daur e haazir ka ye sarmaaya hai bas khudsari, matlab parasti aur hawas ye guzar jaata hai thokar maar kar kab kisi ka waqt par chalta hai bas aashiyaaN ki aanch pahonchi hai yahaN teeliyaaN tapti haiN, jalta hai qafas doob jaae naaummeedi ka jahan aaj ae baaraan e rahmat yuN baras sookhta jaata hai dil ka aabshaar