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आदमीयत का क़त्ल

जब भी माँ की कोख में होता है दूजी माँ का ख़ूँ आदमीअत काँप उठती है ,   लरज़ता है सुकूँ आज जब देखा तो दिल के टुकड़े टुकड़े कर गए ये अजन्मे जिस्म ख़ाक-ओ-खून में लिथड़े हुए काँप उठता है जिगर इंसान के अंजाम पर आदमीअत की हैं लाशें बेटियों के नाम पर मारते हैं माओं को , बदकार हैं , शैतान हैं कौन वो बदबख़्त हैं , इन्सां हैं या हैवान हैं देख कर ये हादसा , बेचैन हूँ , रंजूर हूँ और फिर ये सोचने के वास्ते मजबूर हूँ कोख में ही क़त्ल का ये हुक्म किस ने दे दिया जो अभी जन्मी नहीं थी , जुर्म क्या उस ने किया मर्द की ख़ातिर सदा क़ुरबानियाँ देती रही आदमी की माँ है वो , क्या जुर्म है उस का यही ? मामता की , प्यार की , इख़लास की मूरत है वो क्यूँ उसे तुम क़त्ल करते हो , कोई आफ़त है वो ? हर सितम सह कर भी अब तक करती आई है वफ़ा जब से आई है ज़मीं पर क्या नहीं उस ने सहा जब वो छोटी थी तो उस को भाई की जूठन मिली खिल न पाई जो कभी , है एक ये ऐसी कली उस को पैदा करने का एहसाँ अगर उस पर किया इस के बदले ज़िन्दगी का हक़ भी उस से ले लिया बिक गई कोठों पे , आतिश का निवाला बन गई इज़्ज़

फ़ासला रक्खा, प हर रोज़ मुझे याद किया

फ़ासला रक्खा , प हर रोज़ मुझे याद किया उस सितमगर ने अनोखा सितम ईजाद किया वक़्त के हाथों से इफ़्लास जो मजबूर हुआ हर गुनह दिल ने पस - ए - ग़ैरत - ए - अजदाद किया दिल तो जलता रहे लेकिन न धुआँ उठ पाए मेरी क़िस्मत ने मेरा फ़ैसला इरशाद किया हाथ में अपने सिवा इस के रहा ही क्या है ज़िद में हम आए तो ख़ुद अपने को बरबाद किया ओढ़ कर तेरी तमन्ना का वो बोसीदा सा शाल " जब चली सर्द हवा मैं ने तुझे याद किया " दिल - ए - ज़िंदा में तमन्ना का जहाँ था " मुमताज़ " हम जो वीराने में पहुंचे , उसे आबाद किया فاصلہ   رکّھا , پہ   ہر   روز   مجھے   یاد   کیا اس   ستمگر   نے   انوکھا   ستم   ایجاد   کیا وقت   کے   ہاتھوں   سے   افلاس   جو   مجبور   ہوا ہر   گنہ   دل   نے   پس_غیرت_اجداد   کیا دل   تو   جلتا   رہے   لیکن   نہ   دھواں   اٹھ   پاے میری   قسمت   نے   میرا   فیصلہ   ارشاد   کیا ہاتھ   میں   اپنے   سوا   اس   کے   رہا   ہی   کیا   ہے

वफ़ा से, प्यार से, उम्मीद से भरा काग़ज़

वफ़ा से , प्यार से , उम्मीद से भरा काग़ज़ मिला है आज किताबों में वो दबा काग़ज़ किताब खोली तो क़दमों में आ गिरा काग़ज़ किस एहतेमाम से तू ने मुझे दिया काग़ज़ था भीगा अशकों से शायद कि जल बुझा काग़ज़ किसी के काम न आएगा अधजला काग़ज़ तो आज ख़त्म हुआ ख़त के साथ माज़ी भी हज़ार दर्द लिए ख़ाक हो गया काग़ज़ बिखेर डाले हैं अ ’ अज़ा तो रेल ने लेकिन अभी भी हाथ में है इक मुड़ा तुड़ा काग़ज़ गधा गधा ही रहेगा , करो हज़ार जतन न देगा इल्म इसे पीठ पर लदा काग़ज़ अभी भी रक्खा है “मुमताज़” डायरी में मेरी कहीं वो अश्कों से लिक्खा , कहीं मिटा काग़ज़

किरदार-ए-फ़न, उलूम के पैकर भी आयेंगे

किरदार - ए - फ़न , उलूम के पैकर भी आयेंगे मुस्तक़बिलों की गोद में बेहतर भी आयेंगे उम्मीद का किवाड़ खुला छोड़ दे रफ़ीक़ ऊबेंगे हम जो दश्त से तो घर भी आयेंगे लहरों से जंग करने का रखते हैं हौसला तो फिर हमारे हाथ में गौहर भी आयेंगे ज़ब्त - ए - सितम का ख़ुम भी छलक जाएगा कभी सैलाब ज़हर के कभी बाहर भी आयेंगे हम चूमने चले हैं फ़लक की बलंदियाँ क़दमों तले हमारे अब अख़्तर भी आयेंगे " मुमताज़ " जी ज़माने की बातों का खौफ़ क्या फलदार है दरख़्त तो पत्थर भी आयेंगे کردار_فن , علوم   کے   پیکر   بھی   آینگے مستقبلوں   کی   گود   میں   بہتر   بھی   آینگے امید   کا   کواڑ   کھلا   چھوڑ دے   رفیق اوبنگے   ہم   جو   دشت   سے   تو   گھر   بھی   آینگے لہروں   سے   جنگ   کرنے   کا   رکھتے   ہیں   حوصلہ تو   پھر   ہمارے   ہاتھ   میں   گوہر   بھی   آینگے ضبط_ستم   کا   خم   بھی   چھلک   جاےگا   کبھی سیلاب   زہر   کے   کبھی   باہر   بھی   آینگے ہم   چومنے