मेरे वजूद को ग़म ज़िन्दगी का खा लेगा
मेरे वजूद को ग़म ज़िन्दगी का खा लेगा तेरा ख़याल मुझे कब तलक संभालेगा करुँगी दफ़्न मैं हसरत को दिल की तह में कहीं ये आग सीने में वो भी कहीं दबा लेगा कभी तो ख़ून तमन्ना का रंग लाएगा कभी तो जोश-ए-जुनूँ मंज़िलों को पा लेगा मैं मुन्तज़िर तो हूँ , लेकिन कभी पता तो चले मेरा नसीब मुझे और कितना टालेगा लडेगा क्या शब-ए-तारीक से दिया , लेकिन गुज़रने वाला कोई शमअ तो जला लेगा ख़ज़ाना ढूँढने वाले कभी तो ख़ुद में उतर समन्दरों की तहें कब तलक खंगालेगा उलझना चाहे मेरे दिल की आग से अक्सर " मैं चूक जाऊं तो वो उंगलियाँ जला लेगा" कोई जूनून न हसरत , बचा है क्या मुझ में मुझे वजूद में ' मुमताज़ ' कौन ढालेगा mere wajood ko gham zindagi ka kha lega tera khayaal mujhe kab talak sambhaalega karungi dafn maiN hasrat ko dil ki tah meN kahiN ye aag seene