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आँख का तिल है आप की चौखट

आँख   का   तिल   है   आप   की   चौखट राहत   ए   दिल   है   आप   की   चौखट हर   क़दम   पर   हज़ारहा तूफ़ान और   साहिल   है   आप   की   चौखट दिल   की   धड़कन   से   ले   के   रूह   तलक अब   तो   दाख़िल है   आप   की   चौखट मेरे   और   आप   के   वजूद   के   बीच सिर्फ   हाइल है   आप   की   चौखट ज़िन्दगानी   के   इस   सफ़र   का   यही एक   हासिल   है   आप   की   चौखट मैं   किसी   सिम्त   भी   चलूँ   लेकिन " मेरी   मंज़िल   है   आप   की   चौखट " सर   ब सजदा   न   फिर   हो   क्यूँ   " मुमताज़ " जब   मुक़ाबिल है   आप   की   चौखट آنکھ   کا   تل   ہے   آپ   کی   چوکھٹ راحت_دل   ہے   آپ   کی   چوکھٹ ہر   قدم   پر   ہزارہا   طوفاں اور   ساحل   ہے   آپ   کی   چوکھٹ دل   کی   دھڑکن   سے   لے   کے   روح   تلک اب   تو   داخل   ہے   آپ   کی   چوکھٹ میرے   اور   آپ   کے   وجود   کے   بیچ صرف   حائل   ہے   آپ   کی   چوکھٹ زندگانی   کے   اس   سفر   کا   یہی ایک   حاصل   ہے   آپ   کی   چوکھٹ

ज़िंदा दिली ने ढूँढी है हम में ही आस भी

ज़िंदा दिली ने ढूँढी है हम में ही आस भी हम को पुकारा करती है माज़ी से यास भी क्या क्या बहा के ले गया सैलाब वक़्त का धुंधला गई नज़र भी , ख़ता हैं हवास भी ये बहर-ए-बेकराँ भी हमें कुछ न दे सका थक कर बदन है चूर , है शिद्दत की प्यास भी तू ही जला नहीं है तमन्ना की आग में मेरे लहू से लाल है मेरा लिबास भी पढ़ते रहे हैं पूरी तवज्जह  के साथ हम तक़दीर की किताब का ये इक़्तेबास भी ले आई है कहाँ ये तमन्ना हमें , कि दिल थोड़ा सा मुतमइन भी है , थोड़ा उदास भी आया वो ज़लज़ला कि ज़मीन-ए-हयात में "मुमताज़ " हिल गई मेरी पुख़्ता असास भी  

आँखों को ख़्वाब कितने सुनहरे दिखा गया

आँखों को ख़्वाब कितने सुनहरे दिखा गया दो लफ़्ज़ों में वो पूरी कहानी लिखा गया दे कर तमाम हैरतें , कह कर वो एक बात आँखों को बोलने का सलीक़ा सिखा गया

दिल बता, क्या हुआ

दिल , मेरे दिल क्या हुआ बता बेचैनियाँ बढ़ गईं दिल बता , मेरे दिल बता , क्या हुआ कब कहाँ लुट गया ये क़ाफ़िला हर तरफ़ वही ज़ख़्मी ख़ला हर सिम्त तनहाई तनहाई तनहाई का सिलसिला ख़ामोशियों की दीवारों में है क़ैद मेरी सदा ख़त्म पर है अज़ाबों का ये सर ब सर फ़ासला काग़ज़ी ज़िंदगी वीरान है दूर तक रास्ता सुनसान है तन्हा है हर साँस हर आस , उम्मीद बेजान है कितने ही रेज़ों में बिखरी हुई मेरी पहचान है शहर-ए-एहसास में आरज़ू आज हैरान है हम कहाँ आ गए चलते हुए ज़िन्दगी के वो पल क्या हो गए वो हम सफ़र सारे हमराज़ जाने कहाँ खो गए इस अजनबी राह में तन्हा तन्हा से हम हैं खड़े अपनी हस्ती का ऐ ज़िन्दगी कुछ पता तो चले अजनबी है यहाँ हर एक पल ऐ मेरी ज़िन्दगी अब तो संभल वहशत की जलती हुई ज़ख़्मी तारीकियों से निकल बेचैनियों के सराबों से बच कर कहीं और चल आरज़ूओं की नाकाम तक़दीर का रुख बदल  x

कितनी तरकीबों से इस दिल को मनाया होगा

कितनी   तरकीबों   से   इस   दिल   को   मनाया   होगा दर्द   का   अक्स   ब मुश्किल   जो   छुपाया   होगा हर   तमन्ना   को   लहू   दिल   का   पिलाया   होगा तब   कहीं   उस   को   निगाहों   से   गिराया   होगा उस   को   जब   तर्क - ए - त ' अल्लुक़   ने   सताया   होगा जुस्तजू   में   वो   मेरी   दूर   तक   आया   होगा लौट   आए   तेरी   देहलीज़   से   ये   सोच   के   हम तेरी   महफ़िल   में   बहुत   तंज़   ओ   क़िनाया होगा चल   दिए   हम   जो , तो   ठहरे   न किसी   तौर   मगर   माना   दिल   ने   तो   बहुत   शोर   मचाया   होगा आई   होंगी   कई   यादें   उसे   बहलाने   को शब्   की   तारीकी   ने   ये   जश्न   मनाया   होगा मैं   बिखर   कर   भी   यही   सोच   रही   हूँ   कब   से क्या   भला   उस   ने   मुझे   तोड़   के   पाया   होगा ऐ    मेरी   आस , ज़रा   ठहर , न   इतना   भी   मचल " कौन   आएगा   यहाँ , कोई   न   आया   होगा " बेख़याली   में   उठा   लाए   थे   जो   ख़्वाब कभी क्या   ख़बर   थी   के   वो   ' मुमताज़